• शत्रु के गुण को भी ग्रहण करना चाहिए।
• आलसी का न वर्तमान होता है, न भविष्य ।
• जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगे रहना चाहिए।
• भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
• मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है।
• दंड का भय न होने से लोग अकार्य करते हैं।
• आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।
• अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती ।
• कार्य के मध्य में ज्यादा विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है।
• आग में कभी आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
• ये मत सोचो कि प्यार और लगाव एक ही चीज है। दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हैं। लगाव प्यार को खत्म करता है।
• जो हमारे मन में रहता है, वो दूर हो के भी पास है। लेकिन जो मन में नहीं रहता, वो पास होकर भी दूर है।
चाणक्य