कविता : प्रणति
कलम, आज उनकी जय बोल!
जला अस्थियां बारी – बारी,
छिटकाई जिसने चिंगारी।
जो चढ़ गए पुण्य वेदी पर,
लिए बिना गर्दन का मोल,
कलम, आज उनकी जय बोल!
जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफानों के एक किनारे।
जल – जल कर बुझ गए किसी दिन,
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल!
पीकर जिनकी लाल शिखाएं,
उगल रही लू लपट दिशाएं।
जिनके सिंहनाद से सहमी,
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल!
रामधारी सिंह दिनकर