कविता : जो मां की न सुनेगा
जो माँ की ना सुनेगा
माँ को जो प्यार करें, वो लोग निराले होते हैं
जिसे माँ का आशीर्वाद मिले, वो किस्मत वाले होते हैं।
चाहे लाख करो तुम पूजा और तीर्थ करो हजार,
मगर माँ-बाप को ठुकराया तो सब कुछ है बेकार।
जो माँ की न सुनेगा, तेरी कौन सुनेगा,
जो माँ को ठुकरायेगा, वो दर-दर की ठोकर खायेगा।
जो माँ की न सुनेगा……………
बचपन में पहला शब्द तूने माँ बोला था,
तब ही तेरी माँ का मन मोरनी बनकर डोला था
तेरे पीछे वो पागल बनी थी,
ममता की छाँव का बादल बनी थी,
ऐसी ही माता को भूल न जाना।
ममता के फर्ज को जल्दी चुकाना,
स्वर्ग है माँ के चरणों में जो समझेगा वो पाएगा।
जो माँ की न सुनेगा……………
बुढ़ापे में माता-पिता का साया छूट जाता है,
दौलत के संग माता-पिता का बंटवारा हो जाता है,
एक बेटा अपने घर माँ को ले जाये, एक बेटा बाप को
एक होते भी हो गए पराए, दोनों बिछड़कर आँसू बहायें,
जो बबूल को बोयेगा, वो आम कहाँ से खायेगा।
जो माँ की न सुनेगा……………
इस दुनिया को माँ की महिमा आज सुनानी है,
माँ और बेटे के रिश्ते की ये तो अमर कहानी है,
माता ने बेटे को जन्म दिया है,
बाप ने बेटे को सब कुछ दिया है,
तूने क्या उसका बदला दिया है,
किसके भरोसे छोड़ दिया है,
माता-पिता को दुःख दे के,
कहाँ से तू सुख पायेगा।
जो माँ की न सुनेगा ……………