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कविता : किसको नमन करूं मैं


किसको नमन करूं मैं : रामधारी सिंह दिनकर


तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं।

मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है,

एक देश का नहीं शील यह भूमंडल भर का है।

जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है,

देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्वर है ।।

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

निखिल विश्व की जन्म-भूमि-वंदन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत स्वर तेरा है,

धर्म-दीप हो जिसके भी कर में, वह नर तेरा है।

तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने जाता है,

किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।।

मानवता के इस ललाट-चंदन को नमन करूँ मैं?

किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

रामधारी सिंह दिनकर


कठिन शब्दों के अर्थ

नदीश = समुद्र (Sea)

गिरि = पहाड़ (Mountain)

नमन = नमस्कार (Salute)

वाचक = बताने वाला, सूचक (Indicator)

शील = चरित्र, चाल-चलन (Character)

भूमंडल = पृथ्वी, धरती (Earth)

भास्वर = चमकीला (Radiant, Shining)

निखिल = संपूर्ण, सारा (Whole)

घोष = आवाज़, घोषणा (Sound,Proclamation)

धर्म-दीप = धर्म रूपी दीपक (Lamps of dharma)

कर = हाथ (Hand)

ललाट = माथा (Forehead)