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अपने लक्ष्य का पीछा तब तक करना चाहिए, जब तक उसे हासिल न कर लिया जाए

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने पालतू कुत्ते के साथ आश्रम में टहल रहे थे।

अचानक एक युवक उनके पास आया और श्रद्धा से उनके पैरों में झुक गया। वह बड़ा परेशान लग रहा था।

उसने कहा – “स्वामी जी, मैं प्रतिदिन बहुत मेहनत करता हूं, पर कामयाबी नहीं मिलती। पता नहीं, मेरी किस्मत में क्या लिखा है जो इतना पढ़ लिख कर भी मुझे मनचाही सफलता नहीं मिल रही है।”

विवेकानंद युवक को देखते ही उसकी परेशानी समझ गए।

उन्होंने उस युवक से हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “भाई, मेरे कुत्ते को कुछ दूर तक घुमा कर ले आओ। तब तक मैं तुम्हारे प्रश्न पर विचार करके समाधान देता हूं।”

स्वामी जी के ऐसा कहने से युवक चौक गया। लेकिन वह परेशान था और स्वामी जी ही उसकी आखिरी उम्मीद थे।

इसलिए वह बिना कोई सवाल किए कुत्ते को लेकर निकल पड़ा। कुछ दूरी पर कुत्ते को घुमाने के बाद जब लौटा तो विवेकानंद ने देखा, युवक का चेहरा चमक रहा है। मामूली श्रम से युवक के ललाट पर पसीने की बूंदें चमक रही थी।

दूसरी तरफ कुत्ता थकान के कारण जोर-जोर से हाँफ रहा था। वह अब भी भौंक रहा था और बड़ा बेचैन दिख रहा था। कभी वह इस दिशा में जाकर भौंकता, कभी दूसरी दिशा में जाता।

स्वामी जी ने पूछा- “युवक, तुम तो बड़े शांत दिख रहे हो, पर यह कुत्ता इतना कैसे थक गया?”

युवक ने कहा-“स्वामी जी, मैं तो धीरे-धीरे आराम से चल रहा था। परंतु यह कुत्ता बहुत अशांत था। रास्ते में मिलने वाले सारे जानवरों के आगे पीछे दौड़ रहा था। थोड़ी- थोड़ी दूर पर दाएं बाएं चला जाता और फिर लौटकर कुछ दूर सीधी रेखा में चलता, फिर वही दोहराता। इसलिए समान दूरी तय करने के बाद इतना थक गया है और मैं पूरी तरह शांत हूँ।”

इसके बाद विवेकानंद ने कहा-“तुम्हारी समस्या का भी यही उत्तर है। तुम्हारा लक्ष्य कहीं बहुत दूर नहीं है। किंतु तुम लक्ष्य का पीछा करना छोड़ कर अन्य लोगों की नकल करते हुए उनके पीछे दौड़ते रहते हो और जो पाना चाहते उससे दूर चले जाते हो।”