अपठित गद्यांश – झेन की देन
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
इस विधि में शांति मुख्य बात होती है। इसलिए वहाँ तीन से अधिक आदमियों को प्रवेश नहीं दिया जाता। प्याले में दो घूंट से अधिक चाय नहीं थी। हम ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पीते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहा।
पहले दस-पंद्रह मिनट तो मैं उलझन में पड़ा। फिर देखा, दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही है। थोड़ी देर में बिलकुल बंद भी हो गई। मुझे लगा, मानो अनंतकाल में मैं जी रहा हूँ। यहाँ तक कि सन्नाटा भी मुझे सुनाई देने लगा। अकसर हम या तो गुज़रे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के रंगीन सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यकाल में। असल में दोनों काल मिथ्या हैं। एक चला गया है, दूसरा आया नहीं है। हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है, वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए। चाय पीते-पीते उस दिन मेरे दिमाग से भूत और भविष्य दोनों काल उड़ गए थे। केवल वर्तमान क्षण सामने था और वह अनंतकाल जितना विस्तृत था ।
प्रश्न 1. वहाँ एक समय में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था?
प्रश्न 2. कप में कितनी चाय दी गई थी?
प्रश्न 3. चाय पीते हुए लेखक ने क्या महसूस किया?
प्रश्न 4. चाय की चुसकियों का दौर कब तक चलता रहा?
प्रश्न 5. गद्यांश में कौन-से दो काल मिथ्या बताए गए हैं?