अनुच्छेद लेखन : विज्ञान के चमत्कार
आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज सर्वत्र विज्ञान का ही राज्य दिखता है। एक समय थाजब मनुष्य जंगलों में आदि मानव की तरह भटकता था। प्रकृति का दास था। प्राकृतिक आपदाओं से भयभीत था। पर्वतों के ऊँचे शिखर उसे डराते थे। नदियों का प्रवाह उसके साहस को चुनौती देता था, सागर की लहरें उसके मन को भयभीत करती थीं। परंतु कहते हैं न आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मनुष्य ने अपने अंदर के साहस को बटोरा अपनी शक्ति का संग्रह कर प्रकृति से लोहा लेने लगा। अंतरिक्ष की टोह ली। नक्षत्रों और तारों की दुनिया जानी! उसने पृथ्वी के कोख से खनिज पदार्थ ढूँढ़े। उसने आग का, पहिए का आविष्कार कर सबको न केवल अचंभे में डाल दिया बल्कि क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिखाया। उसने रेल, बस, कार आदि यातायात के साधन देकर इस पृथ्वी को सिकोड़कर रख दिया। अनेक ग्रहों और उपग्रहों से संपर्क साधकर बिजली, फोन, दूरदर्शन, तार, फैक्स, मोबाइल, फोन, टेलीप्रिन्टर तक खोज डाले। क्या मनोरंजन, क्या शिक्षा और क्या चिकित्सा क्षेत्र कुछ भी विज्ञान से अछूता न रहा। दूरदर्शन, सिनेमा आदि ने मनुष्य के ज्ञान एवं शिक्षा का प्रसार एवं प्रचार किया। विभिन्न तकनीकों आदि से आज उसने मौसम पर भी नियंत्रण कर लिया है। कृषि आदि के लिए प्रकृति के मोहताज मनुष्य ने आज सरदी में गरमी का और गर्मी में सर्दी का आनंद देनेवाले कूलर, पंखे, फ्रिज एयरकंडीशनर तक तैयार कर लिए हैं। बारहों महीने मौसमी फलों एवं सब्जियों का आनंद उठाया जा सकता है। घर बैठे पूरी दुनिया के मौसम का हाल जाना जा सकता है। अनेक प्रकार की भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में मनुष्य ने अनेक घातक बीमारियों पर नियंत्रण कर लिया है। कृत्रिम अंगों का विकास होने लगा है। विज्ञान के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ हानियाँ भी हैं। विज्ञान मनुष्य को ईश्वर से मानवीय गुणों से एवं मानवता से विमुख करने में भी उत्तरदायी है। ईश्वर की सत्ता में हस्तक्षेप करने लगा है। विश्व में प्रतिस्पर्धा करना, अणु-परमाणु बम बनाना, विविध परीक्षण करना, प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय और प्रदूषण फैलाना उसके लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। आज प्रकृति खतरे के कगार पर खड़ी है। आज भी ईश्वरीय सत्ता को माना जाता है। आश्चर्य है कि आज भी जन्म-मृत्यु का रहस्य कायम है। अतः मनुष्य को यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं उसकी अति उसके किए कराए पर पानी न फेर दे। शून्य से आरंभ हुई सृष्टि पुनः शून्य पर न आ जाए। विज्ञान जितना लाभकारी हो सकता है उतना ही विध्वंसकारी भी हो सकता है। मशीनों का दास बनकर मनुष्य को अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मारनी चाहिए।
विज्ञान के विषय में उचित ही कहा गया है-विष्णु सरीखा पालक है, शंकर जैसा संहारक, पूजा उसकी शुद्ध भाव से करो आज से आराधक।