अनुच्छेद लेखन : युवा चेतना और समाज
युवा चेतना और समाज
युवक किसी भी देश अथवा समाज के भविष्य के दर्पण होते हैं तथा एक अनुशासित, प्रशिक्षित और कर्मठ युवा वर्ग हमेशा ही उस देश की चेतना और कर्म-स्रोत होते हैं। उनमें उत्साह और स्फूर्ति की ललक तथा शक्ति का असीम भंडार होता है। आज ही नहीं, प्राचीन काल से ही युवाओं की गरिमा सर्वविदित और सर्वमान्य रही है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। चाहे भगत सिंह हों या चंद्रशेखर आज़ाद, इनकी कुर्बानी भुलाई नहीं जा सकती। विडंबना यह है कि हमारा युवा वर्ग आज दिग्भ्रमित हो रहा है। जहाँ एक तरफ उसके साथ एक गौरवशाली परंपरा जुड़ी रही है. वहीं दूसरी ओर विध्वंसक, तोड़फोड़ और हिंसा के काले कारनामे अब उनके नाम के साथ जुड़ते चले जा रहे हैं। युवाओं में पनप रही हिंसा, लूट और तोड़-फोड़ की प्रवृत्तियों का सबसे बड़ा कारण आर्थिक है। बेरोज़गारी से त्रस्त युवकों के लिए मौका मिलते ही उनका हिंसा, आगजनी और लूटपाट से प्रेरित हो जाना बहुत आसान होता है। आए दिन शहरों में हो रहे हिंसा के विस्फोट के तात्कालिक कारण जो भी हों, उनकी विकरालता और व्यापकता को देखते हुए स्पष्ट हो जाता है कि इसकी जड़ें सामाजिक, प्रदर्शित आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर अधिक गहरी हैं। युवकों को दिशाहीन और अनुशासनहीन बनाने में वर्तमान शिक्षा प्रणाली और हिंदी फिल्मों में ग्लैमर का कम दोष नहीं है। आज आवश्यकता है युवाओं के लिए उचित निर्देश की, जिसके लिए हमें अधिक-से-अधिक प्रयत्न करने होंगे।