अनुच्छेद लेखन : मदर टेरेसा
मदर टेरेसा
प्रेम मनुष्य को ईश्वर के द्वारा दिया हुआ वह वरदान है जिसके सहारे उसे कठिन से कठिन समय को भी बिताने में परेशानी नहीं होती। प्रेम भावना मानव को सच्चा मानव बनाती है। मानवता के प्रति प्रेम को किसी देश, जाति या धर्म की संकुचित परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। विश्व में मानव की निःस्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभूतियों में से मदर टेरेसा सर्वोच्च थीं। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कोपजे नामक एक छोटे से नगर में हुआ था। बारह वर्ष की आयु में अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित कर अठारह वर्ष की आयु में नन बन गई। इसके लिए ये आयरलैंड के लोरेटो ननों के केंद्र में सम्मिलित हो गई। वहाँ से उन्हें भारत जाने का संदेश मिला। सन् 1929 में वे एग्नेस लोरेटो एटेली स्कूल में अध्यापिका बनने कोलकाता पहुँची। आरंभ में अध्यापिका के रूप में सेवा कार्य किया। अपनी योग्यता, कार्यनिष्ठा तथा सेवाभाव के कारण प्रधानाध्यापिका बन गई। 10 दिसंबर, 1946 को रेल से ये दार्जिलिंग जा रही थीं तो इन्हें भीतर से पुकार पर पुकार सुनाई पड़ रही थी। इन्हें लगा कि स्कूल छोड़कर गरीबों के बीच रहकर उनकी सेवा करनी होगी। इन्होंने स्कूल छोड़कर सन् 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। ये दो पतली नीली किनारी वाली सफेद साड़ियाँ लेकर पीड़ित मानवता की सेवा के क्षेत्र में जुट गई। सन् 1948 में इन्होंने कोलकाता में झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वालों के लिए स्कूल खोला तथा असहाय लोगों के लिए काली मंदिर के पास ‘निर्मल हृदय’ नामक धर्मशाला की स्थापना की। मदर टेरेसा अत्यंत सहनशील और असाधारण करुणामयी थीं। रोगियों, वृद्धों, भूखे, नंगे गरीबों के प्रति इनके मन में असीम ममता थी। इन्होंने अपना सारा जीवन पीड़ितों की सेवा में समर्पित कर दिया। पीड़ित मानवता की तन-मन से सेवा करने वाली मदर टेरेसा सितंबर, 1997 को यह संसार छोड़कर हमेशा के लिए चली गई।