अनुच्छेद लेखन : भारत में आतंकवाद
भारत में आतंकवाद
भारत भूमि अहिंसा की पुजारी है। शांति से जीवन-यापन करना ही यहाँ के लोगों का लक्ष्य रहा है। ‘जीओ और जीने दो’ का नारा ही उसका धर्म रहा है। लेकिन खेद का विषय यह है कि अहिंसक और शांतिप्रिय देश भारत में पिछले कई दशकों से सांप्रदायिक हिंसा और आतंकवाद का बोलबाला है। आतंकवाद की शुरुआत बंगाल में नक्सलवादियों द्वारा आरंभ की गई। इसको आगे बढ़ाने का काम पंजाब में खालिस्तान बनाने की माँग से हुआ। असंख्य बेगुनाहों का खून बहा। आज स्थिति यह है कि इसका स्वरूप इतना विकृत होता जा रहा है कि धीरे-धीरे समूचा भारत (कश्मीर, असम, बिहार, उत्तर-प्रदेश के तराई क्षेत्र, त्रिपुरा, आंध्र-प्रदेश) ही इसका शिकार हो रहा है। जन-जन में आज भय समा गया है। देश की स्थिति यह है कि देश के लोग ही इसे खोखला करने में लीन हैं। बेरोजगारी से बचने के लिए धार्मिक युद्ध (जेहाद) का मुखौटा ओढ़कर आतंकवाद में कदम रखने वाले युवा देश में अशांति और अस्थिरता का माहौल फैलाकर अपनी विजय-पताका को ऊँचा करने में लगे हैं। सरकार अपनी ओर से इस आतंकवाद के भूत को भगाने का पूरा प्रयास कर रही है; कानून बदल रही है; आम लोगों के मन को जागृत करने का प्रयास कर रही है, लेकिन परिणाम कुछ भी नहीं मिल रहे हैं। मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली में हुए ‘सीरियल ब्लास्ट’ इस बात की गवाही देते हैं कि हमारे देश का कानून ही नहीं, सुरक्षा व्यवस्था भी बहुत कमज़ोर है। हज़ारों की संख्या में बेगुनाह लोगों का बहता खून इस बात की गवाही है कि देश आज आतंकवाद के साये में पल रहा है। आवश्यकता है इसके विरुद्ध कठोर कदम उठाने की। कहते हैं-‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते’। अतः आतंकवाद-रूपी साँप के फन को कुचलने का हमें पूर्ण प्रयास करना होगा। इस अभियान में देश के प्रत्येक सदस्य का सहयोग आवश्यक है अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पूरा भारत त्राहि-त्राहि कर रहा होगा।