अपठित गद्यांश : दुःख का अधिकार (बुढ़िया खरबूजे बेचने)
बुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर
Read moreबुढ़िया खरबूजे बेचने का साहस करके आई थी, परंतु सिर पर चादर लपेटे, सिर को घुटनों पर टिकाए हुए फफक-फफककर
Read moreजिंदा आदमी नंगा भी रह सकता है, परंतु मुर्दे को नंगा कैसे विदा किया जाए? उसके लिए तो बजाज की
Read moreदुःख का अधिकार : यशपाल ‘दुःख का अधिकार’ एक व्यंग्यपूर्ण रचना है। इसमें इस बात पर दुःख प्रकट किया गया
Read more