अनुच्छेद लेखन : साँच बराबर तप नहीं (सत्यमेव जयते)
कबीरदास के अनुसार- “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हृदय साँच है – ताके हिरदय प्रभु आप।” अर्थात
Read moreकबीरदास के अनुसार- “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हृदय साँच है – ताके हिरदय प्रभु आप।” अर्थात
Read moreसाँच बराबर तप नहीं संस्कृत की एक प्रसिद्ध उक्ति है-‘सत्येन धारयते जगत’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण करता है।
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