कविता : मां
माँ एक रूप अनेक तपते मरु में राहत देती माँ बरगद की छाँव है। दरिया से उफनते जीवन में माँ,
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Read Moreसूरज-चाँद धरती पर लिख सकती हूँ पर माँ पर नहीं लिख सकती कविता माँ के लिए संभव नहीं होगी मुझसे
Read Moreमाँ तो बस माँ है होती “माँ का कोई धर्म कोई जाति नहीं होती माँ तो बस माँ है होती,
Read Moreमाँ तू महान, तुझ पर मैं कुर्बान तू आँगन में किलकारी, माँ ममता की तुम फुलवारी। सब पर छिड़के जान,
Read Moreआसमान ने कहा – माँ एक इन्द्रधनुष है जिसमें सभी रंग समाए हुए हैं। शायर ने कहा – माँ एक
Read Moreसबसे खूबसूरत बच्चा मेरा है, बादशाह सलामत! एक समय की बात है, बादशाह अकबर ने अपनी नगरी में सबसे खूबसूरत
Read Moreजो माँ की ना सुनेगा माँ को जो प्यार करें, वो लोग निराले होते हैं जिसे माँ का आशीर्वाद मिले,
Read Moreसुबह-सवेरे आपको जगाने से लेकर रात को आपको सोने तक वह आपके लिए कुछ न कुछ करती रहती है। माँ
Read Moreमाँ – मेरे लिए खास एक ऐसी रचना जो सब पर भारी है, उसी की सृष्टि ये दुनिया सारी है,
Read Moreमाँ – वात्सल्य का दूसरा नाम माँ का प्यार सार्वभौमिक है। वह आदिम वात्सल्य का प्रतीक है। माँ दयालु है,
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