अपठित गद्यांश : अपने खर्राटों से……….. तुम लौट जाओ।
तुम कब जाओगे, अतिथि : शरद जोशी अपने खर्राटों से एक और रात गुंजायमान करने के बाद कल जो किरण
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Read Moreतुम कब जाओगे, अतिथि : शरद जोशी तुम्हें यहाँ अच्छा लग रहा है न। मैं जानता हूँ। दूसरों के यहाँ
Read Moreअतिथि तुम कब, जाओगे : शरद जोशी तीसरे दिन की सुबह तुमने मुझसे कहा, “मैं धोबी को कपड़े देना चाहता
Read Moreअतिथि तुम कब, जाओगे : शरद जोशी दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में
Read Moreतुम कब जाओगे, अतिथि: शरद जोशी निम्नलिखित गद्यांश और इस पर आधारित प्रश्नों को ध्यान से पढ़ कर उत्तर दीजिए-
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Read Moreतुम कब जाओगे, अतिथि : शरद जोशी प्रश्न 1. तीसरे दिन की सुबह अतिथि के अनुग्रह ने उसके किस इरादे
Read Moreतुम कब जाओगे, अतिथि : शरद जोशी प्रश्न 1. अतिथि के न जाने पर लेखक के मन में क्या विचार
Read Moreतुम कब जाओगे, अतिथि – शरद जोशी प्रस्तुत व्यंग्यात्मक लेख में ऐसे लोगों की आलोचना की गई है जो दूसरों
Read Moreतुम कब जाओगे अतिथि : शरद जोशी आगमन-आना। चतुर्थ-चौथा। निस्संकोच – बिना शर्म के। विगत-बीता हुआ। सतत – लगातार। आतिथ्य
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