दया धर्म का मूल है
अनुच्छेद लेखन : दया धर्म का मूल है दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छोड़िये
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Read Moreश्रम का महत्त्व ‘श्रम’ ही सफलता का मूल मंत्र है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास
Read Moreसमय का महत्त्व संसार में हमारा आना एक निश्चित समय के लिए ही होता है। क्षणों से निर्मित यह हमारा
Read Moreआत्मविश्वास आत्मविश्वास मानव-चरित्र का मौलिक गुण तथा उसके जीवन-पथ का प्रबल संबल है। यह गुण मनुष्य को घर-परिवार व समाज
Read Moreस्वावलंबन स्वावलंबन सफलता की कुंजी है। स्वावलंबी व्यक्ति जीवन में यश और धन दोनों अर्जित करता है। दूसरे के सहारे
Read Moreपरोपकार परोपकार का अर्थ है अपनी चिंता किए बिना, शेष सभी सामान्य-विशेष की भले की बात सोचना, आवश्यकतानुसार और यथाशक्ति
Read Moreस्वस्थ जीवन के लिए व्यायाम ‘तंदुरुस्ती हज़ार नियामत’ (सेहत हज़ार नियामत) अर्थात् स्वास्थ्य ही हज़ारों नियामतों के बराबर है। स्वस्थ
Read Moreझाँसी की रानी लक्ष्मीबाई भारत भूमि वीर प्रसविनी कहलाती है। इस भूमि ने जहाँ अनेक वीरों को जन्म दिया, वहाँ
Read Moreमहात्मा गांधी एक विद्वान ने महात्मा गांधीजी के लिए सच ही कहा था-” भविष्य में लोग विश्वास नहीं कर पाएँगे
Read Moreविद्यालय में वन महोत्सव प्रकृति सदैव मनुष्य की सहचरी रही है, किंतु जब मनुष्य ने अपने हित के लिए प्रकृति
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