झेन की देन
झेन की देन : निबंधात्मक प्रश्न – उत्तर
प्रश्न 1. जापान में अस्सी प्रतिशत लोगों में मनोरुग्णता के कारणों को समझाते हुए लिखिए कि इस संदर्भ में चा-नो-यू की परंपरा को ‘एक बड़ी देन’ क्यों कहा गया है?
उत्तर – जापान के अस्सी प्रतिशत लोग मनोरुग्ण हैं। उनके जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। वहाँ के लोग चलते नहीं, बल्कि दौड़ते हैं, वे अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने लगे हैं जिस कारण उनमें मानसिक रोग बढ़ गए हैं। वे बहुत तेज़ गति से प्रगति करना चाहते हैं। इसके लिए उनका प्रयत्न एक माह का काम एक दिन में पूरा करने का रहता है। एक दिन लेखक एक जापानी मित्र के साथ टी-सेरेमनी में गया। वहाँ का वातावरण शांतिपूर्ण था। चाय पीने पर उसे शांति प्राप्त हुई और दिमाग की रफ्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ती जा रही थी, वह अनुभव करने लगा कि वह अनंत काल में जी रहा है। उसके सामने वर्तमान क्षण था और वह अनंत काल जितना विस्तृत था ‘चा-नो-यू’ परम्परा की यह बहुत बड़ी देन जापानियों को मिली है।
प्रश्न 2. चा-नो-यू की पूरी प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में करते हुए लिखिए कि उसे झेन परंपरा की अनोखी देन क्यों कहा गया है?
अथवा
प्रश्न. ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर चा-नो-यू विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर – ‘टी सेरेमनी’ चाय पीने की एक विधि को कहा जाता है। जापानी भाषा में इसे चा-नो-यू कहते हैं। इसके लिए एक शान्तिपूर्ण कमरे में अधिकतम तीन व्यक्तियों को बैठाकर प्याले में दो घूँट ही चाय पीने को दी जाती है। इसमें शान्ति का महत्त्व होने से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं ही अनुभव किया कि अतीत की उलझन निकल जाती है तथा दिमाग की रफ़्तार कम होते हुए बंद हो जाती है और सन्नाटा सुनाई देने लगता है। इस प्रकार वर्तमान में जीते हुए व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है और उसे जीने का वास्तविक अर्थ मिल जाता है। इसलिए उसे झेन परंपरा की अनोखी देन कहा गया है।
प्रश्न 3. जापान में अधिकांश लोगों के मनोरुग्ण होने के क्या कारण हैं? तनाव से मुक्ति दिलाने में झेन परम्परा की चा-नो-यू विधि किस प्रकार सहायक है?
उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ के अनुसार जापानी लोगों के मानसिक रोगी होने का प्रमुख कारण उनकी अमेरिका से प्रतिस्पर्धा की भावना है। वे अमेरिका से आगे बढ़ने की चाहत में बहुत तेज़ गति से प्रगति करना चाहते हैं। इसके लिए वे एक माह का काम एक दिन में पूरा करने का प्रयास करते हैं। इससे तनाव बढ़ता है। एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ मानसिक रोगी होने का प्रमुख कारण है। तनावपूर्ण जीवन मानसिक रोगों की जड़ है।
तनाव से मुक्ति दिलाने में झेन परम्परा की चा-नो-यू विधि बहुत सहायक है। यह एक ऐसा ज़रिया है जो व्यक्ति के तनावपूर्ण जीवन को कुछ शांति के पल प्रदान करता है और व्यक्ति को यह अहसास कराता है कि वर्तमान ही सत्य है। भूत और भविष्य की चिंताओं से यह व्यक्ति को बाहर निकालती है।
प्रश्न 4. जापान में मानसिक रोग के क्या कारण बताए गए हैं? उससे होने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए लिखिए कि इसमें ‘टी सेरेमनी’ की क्या उपयोगिता है?
उत्तर – जापानी लोग सदैव अमेरिका से होड़ करते रहते हैं। वे एक महीने का काम एक दिन में करते हैं, इसी कारण उनके दिमाग पर अत्यधिक जोर पड़ता है और वे रोगी हो जाते हैं। जापान के लोग कभी भी शांत नहीं बैठते। वे सदैव कुछ न कुछ करते रहे हैं। जब वे खाली होते हैं तो वे स्वयं से बड़बड़ाने लगते हैं एवं व्यर्थ ही अपने दिमाग पर जोर डालते हैं। अमेरिका से प्रतिस्पर्धा के कारण वे लोग हमेशा व्यस्त रहते हैं एवं स्वयं के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देते जिसके कारण वे मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। जापान के 80 % लोग मानसिक रोगों से पीड़ित होते हैं। इस समस्या से बाहर निकलने के लिए झेन परम्परा में लोग टी – सेरेमनी का प्रयोग करते हैं। इस परम्परा के अनुसार व्यक्ति को अपने दिमाग को शांत होने के लिए कुछ समय देना चाहिए।
‘टी सेरेमनी’ चाय पीने की एक विधि को कहा जाता है। जापानी भाषा में इसे चा-नो-यू कहते हैं। इसमें लोग एक सुंदर एवं शांत पर्णकुटी में जाकर चाय का आनंद उठाते हैं, परन्तु उस जगह तीन से अधिक लोगों का प्रवेश निषेध है। इस प्रक्रिया में शांति बेहद महत्वपूर्ण है। उस कुटिया में चाय पिलाने वाला चाजीन होता है जो अतिथियों का स्वागत करता है एवं उन्हें बैठने के लिए जगह देता है। फिर वह चाय बनाकर पीने के लिए परोसता है, परन्तु चाय केवल दो घूँट ही होती है, जिसे चूस – चूसकर पीया जाता है। इस प्रक्रिया में मानो दिमाग धीरे – धीरे बंद होने लगता है। फिर एक समय ऐसा आता है कि व्यक्ति अनन्तकाल में जीने लगता है। इसलिए ‘टी – सेरेमनी’ एक बेहद ही लाभदायक परम्परा है जो हमें मनोरोगी होने से बचाती है।
प्रश्न 5. ‘झेन की देन’ पाठ में जापानी लोगों को मानसिक रोग होने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? आप इनसे कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ में जापानी लोगों को मानसिक रोग होने के जो कारण बताए हैं उनमें सबसे प्रमुख कारण उनकी अमेरिका से प्रतिस्पर्धा की भावना है। वे बहुत गति से प्रगति करते हैं। इसके लिए उनका प्रयत्न एक माह का काम एक दिन में पूरा करने का रहता है। लेखक ने इन्हीं कारणों की वजह से उनके दिमाग में स्पीड का इंजन लगाने की बात कही है, जिसके कारण उनकी मानसिक क्षमता बढ़ जाएगी। एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ मानसिक रोग होने का प्रमुख कारण है। इन कारणों से हम पूरी तरह सहमत हैं, क्योंकि प्रतिस्पर्धा में अधिक पाने की चाह में तनावपूर्ण जीवन मानसिक रोगों की है।
प्रश्न 6. ‘टी-सेरेमनी’ की तैयारी और उसके प्रभाव पर चर्चा कीजिए।
उत्तर – ‘टी-सेरेमनी’ को जापानी भाषा में चा-नो-यू कहते हैं। टी-सेरेमनी का प्रबंध तातामी (चटाई) की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी में था। पर्णकुटी दफ्ती की दीवारों वाली थी। चाजीन ने दो-झो (आइए, तशरीफ लाइए) कहकर स्वागत किया। मिट्टी के बर्तन में पानी भरा हुआ था, जिससे हाथ-पाँव धोकर ही अंदर प्रवेश कर सकते थे। अँगीठी सुलगाई गई। चाय चढ़ाई, बर्तन लाकर तौलिए से साफ किए गए। यह सभी क्रियाएँ उसने बहुत ही गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं। ‘टी सेरेमनी’ में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता है, क्योंकि इस सेरेमनी में शांति का बहुत महत्त्व होता है, इसलिए वहाँ अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता।
प्रभाव – चाय पीने के बाद दिमाग की रफ्तार धीमी पड़ती जाती है। इसमें मानसिक रोग का उपचार होता है, मानसिक सन्तुलन होता है तथा व्यक्ति भूत-भविष्य की चिंता नहीं करता है। ऐसा लगता है वह मानो, अनंतकाल में जी रहा हो और वर्तमान से उसका जुड़ाव हो गया हो।
प्रश्न 7. ‘टी सेरेमनी’ किसे कहा जाता है? इसमें होने वाले अनुभवों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
टी सेरेमनी –
- चाय पीने की एक विधि, जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
- शांतिपूर्ण कक्ष में अधिकतम तीन व्यक्तियों को बिठाकर, प्याले में दो घूँट ही चाय दी जाती है।
अनुभव –
- अतीत या भविष्य की उलझन से निकलते हुए दिमाग की रफ्तार कम होना और अंततः बंद होना।
- वर्तमान में जीते हुए अत्यधिक संवेदनशील हो जाना, जीने का वास्तविक अर्थ मिलना।
अथवा
उत्तर – ‘टी सेरेमनी’ चाय पीने की एक विधि को कहा जाता है। जापानी में इसे चा-नो-यू कहते हैं। इसके लिए एक शान्तिपूर्ण कमरे में अधिकतम तीन व्यक्तियों को बिठाकर प्याले में दो घूँट ही चाय दी जाती है। इसमें शान्ति का महत्त्व होने से अधिक लोगों को प्रवेश नहीं दिया जाता। चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं ही अनुभव किया कि अतीत की उलझन निकलते ही दिमाग की रफ़्तार कम होते हुए बंद हो जाती है और सन्नाटा सुनाई देने लगता है। इस प्रकार वर्तमान में जीता हुआ व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील हो जाता है और उसे जीने का वास्तविक अर्थ मिल जाता है।