अनुच्छेद लेखन
लेख : पर्यावरण हमारा रक्षा कवच
पर्यावरण शब्द ‘परि’ और ‘आवरण’ दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका अभिप्राय है – हमारे आसपास का वह आवरण जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण प्रकृति की ही देन है। यह उन सभी भौतिक, रासायनिक और जैविक तत्वों का योग है जो सम्पूर्ण सृष्टि के प्राणियों, जीव-जन्तुओं और अजैविक संघटकों और उनसे जुड़ी प्रक्रियाओं जैसे – पर्वत, चट्टानों, नदी, वायु और जलवायु के तत्व आदि के लिए परम आवश्यक है। प्रकृति और पर्यावरण में अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है। हमारा पर्यावरण धरती पर स्वस्थ जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानव ने पर्यावरण में उपलब्ध संसाधनों का भरपूर उपयोग कर अपना विकास किया है। पर्यावरण हमारा रक्षा कवच है किन्तु आज मानव प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करके पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग, नदियों एवं अन्य जल स्रोतों में अपशिष्ट पदार्थ डालना, कल-कारखानों और वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआँ हमारे पर्यावरण को दूषित कर रहा है, जिससे पृथ्वी का सन्तुलन बिगड़ रहा है और हमें प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। इसे रोकने के लिए हमें जल स्रोतों की सुरक्षा, वर्षा के जल का संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण, पानी और बिजली का अपव्यय रोकना, निजी वाहनों के स्थान पर सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना तथा वृक्षारोपण जैसे उपाय अपनाने होंगे। निष्कर्षतः पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण करना हम सब का कर्त्तव्य है। इसी उद्देश्य से विश्व में जागरूकता फैलाने के लिए प्रति वर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।