कविता : मनुष्यता – लघु प्रश्न उत्तर
प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता में उदार व्यक्ति की क्या पहचान बताई गई है और उसके लिए क्या भाव व्यक्त किए हैं?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में उदार व्यक्ति की यही पहचान बताई गई है कि उसकी सदा मृत्यु होती है, वह सबका हितैषी होता है, उसका बखान सरस्वती किताबों के रूप में करती है तथा धरती भी उनसे कृतार्थ भाव मानती है। इन व्यक्तियों के लिए कविता में आदर, सहानुभूति, दया, सत्यवादिता, बलिदानी आदि भाव व्यक्त किए गए हैं।
प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता में कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा गया है और क्यों?
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि का कहना है कि यह जगत नाशवान है। जिस मनुष्य ने इस जगत में जन्म लिया है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। परंतु जो मृत्यु निःस्वार्थ भाव से परोपकार करते हुए होती है उस मृत्यु को समृत्यु कहा जाता है अर्थात जो परोपकार की भावना से स्वयं से पहले दूसरों की चिंता करता है, उसकी मृत्यु के बाद भी उस व्यक्ति को सदा याद रखा जाता है। उसकी मृत्यु समाज की दृष्टि में सम्माननीय एवं प्रेरणादायी होती है।
प्रश्न. ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है?
उत्तर – कवि मैथिलीशरण गुप्त ने मनुष्यता कविता में सभी को एक-साथ एकजुट होकर चलने को कहा है क्योंकि एकता में बल होता है। कवि के अनुसार मनुष्य को उदार, करुणावान एवं परोपकारी होना चाहिए। कवि के अनुसार हम सभी एक ही त्रिलोक नाथ की संतान हैं इसलिए हम सभी बंधु हैं। हमें एक दूसरे के सुख-दुख में साथ रहना चाहिए एवं एक-दूसरे की सहायता करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। एक साथ चलने पर हम एक-दूसरे के कष्ट को निवार सकते हैं एवं मार्ग में आने वाली कठिनाइयों कठिनाइयों का सामना आसानी से कर सकते हैं।
प्रश्न. मैथिलीशरण गुप्त ने गर्व रहित जीवन बिताने के लिए क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त ने गर्व रहित बिताने के लिए तर्क देते हुए कहा है कि संसार में रहने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि धन-संपत्ति तुच्छ वस्तु है और हम सब के साथ सदैव ईश्वर है। हम अनाथ न होकर सनाथ हैं क्योंकि हम सब परमपिता परमेश्वर की संतान हैं। हमें सदैव परोपकार का मार्ग अपनाना चाहिए।
प्रश्न . ‘मनुष्यता’ कविता के अनुसार पशु-प्रवृत्ति क्या है और मनुष्य किसे माना गया है?
उत्तर – कवि के अनुसार स्वयं अपने लिए खाना, कमाना और जीना तो पशु का स्वभाव है। यही पशु-प्रवृति कहलाती है। किंतु जो मनुष्य स्वयं अपने लिए ही नहीं जीता, बल्कि समाज के लिए जीता है, वह कभी नहीं मरा करता। ऐसा मनुष्य संसार में अमर हो जाता है। सच्चा मनुष्य वह है जो सम्पूर्ण मनुष्यता के लिए जीता और मरता है।
प्रश्न. कविता के अनुसार उदार व्यक्ति की पहचान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘मनुष्यता’ कविता में कवि ने उदार व्यक्ति की पहचान स्पष्ट करते हुए कहा है कि जो मनुष्य दूसरों के प्रति दया भाव, सहानुभूति, परोपकार की भावना, करुणा भाव, समानता, दानशीलता, विवेकशीलता, धैर्य, साहस गुणों से परिपूर्ण होता है वह व्यक्ति उदार कहलाता है। ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा समाज के लोगों द्वारा की जाती है तथा ऐसा व्यक्ति यश-कीर्ति प्राप्त कर समाज में आदर पाता है।
प्रश्न. ‘वृथा मरे, वृथा जिए’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – कवि के अनुसार जो व्यक्ति स्वार्थपूर्ण जीवन व्यतीत करता हुआ अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, ऐसे मनुष्य का जीना और मरना दोनों वृथा हैं। मनुष्य को अपनी बौद्धिक शक्ति और संवेदनशीलता के बल पर सृजनात्मक तथा अविस्मरणीय कार्य करने में ही जीवन की सार्थकता समझना चाहिए, किन्तु यदि मनुष्य का जीवन समाप्त होने के साथ ही लोग उसे भूल जाएँ, तो उसका जीवन और मरण दोनों ही बेकार हैं।
प्रश्न. कवि गर्वरहित जीवन जीने की सलाह क्यों दे रहा है?
उत्तर – कवि गर्वरहित जीवन जीने की सलाह इसलिए देता है, क्योंकि गर्व मनुष्य को मानवता से गिराता है। गर्व में अंधा व्यक्ति लोगों की मुश्किलों को नहीं समझ पाता, न ही उसे दुःखी व्यक्ति के कष्ट नजर आते हैं। जब ईश्वर की दृष्टि में संसार में छोटा बड़ा कोई नहीं है, तो मानव दूसरों को अपने से लघु समझकर उनके साथ दुर्व्यवहार क्यों करे?