परिश्रम का महत्त्व
प्रस्तावना – परिश्रम सफलता की कुंजी है। विश्व के जो देश बुद्धि, धन, बल तथा तकनीक में शीर्ष पर हैं, वह कोई जादुई चमत्कार के बल पर नहीं वरन् परिश्रम के माध्यम से हैं। जापान जो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान लगभग समाप्त-सा गया था वह आज परिश्रम के बल से विश्व के औद्योगिक क्षेत्र में प्रकाश-स्तंभ के रूप में उभर कर आया है। जिस चीन को एक समय पिछड़ा कहा जाता था वो आज एक शक्ति है, सैंकड़ों वर्षों की गुलामी झेलने वाला भारत आज एक स्वावलम्बी राष्ट्र है। आधुनिक मानव ने पृथ्वी, आकाश और पाताल के सभी रहस्यों पर से पर्दा उठा दिया है। परिश्रम बल पर ही यह सब संभव पाया है।
परिश्रम: अभिप्राय और आवश्यकता – किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जो शारीरिक एवं मानसिक प्रयास किया जाता है, उसे परिश्रम कहते हैं। परिश्रम ही जीवन को गति प्रदान करता है। परिश्रम का वास्तविक रूप तो संपूर्ण प्रकृति में देखने को मिलता है। पशु-पक्षी, जीव – जंतु सभी निरंतर परिश्रम में लगे रहते हैं। भोजन की थाली चाहे सामने ही क्यों न सजी हो, लेकिन भोजन को मुँह में पहुंचाने के लिए श्रम तो करना ही होगा। इस प्रकार हम कह सकते कि अस्तित्व की रक्षा के लिए और सुख के साधन प्राप्त करने के लिए श्रम की आवश्यकता होती है।
उन्नति एवं विकास का साधन – परिश्रम जीवन की उन्नति एवं विकास का एकमात्र साधन है। जो व्यक्ति जितना अधिक परिश्रम करता है वह उन्नति की उतनी ही सीढ़ियाँ चढ़ जाता है। उन्नत राष्ट्र की उन्नति का रहस्य उसके कठोर श्रम में ही छिपा हुआ है। जापान, जर्मनी, अमेरिका, चीन, इंग्लैण्ड आदि देश परिश्रम की राह पर चलकर ही आज विश्व शक्ति के रूप में जाने जाते हैं।
परिश्रमी व्यक्ति भाग्यवाद का विरोधी – परिश्रमी व्यक्ति केवल कर्म में विश्वास करता है, भाग्य में नहीं। परिश्रम करने पर भी यदि उसे सफलता प्राप्त नहीं होती तो वह भाग्य को दोष नहीं देता, बल्कि वह अपनी असफलता के कारणों पर विचार करता है। परिश्रमी व्यक्ति अपने मार्ग में आने वाली विघ्न-बाधाओं से भयभीत नहीं होता।
उपसंहार – जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाने का मूलमंत्र परिश्रम ही है। परिश्रम के द्वारा पर्वतों को काटकर मार्ग और रेगिस्तानों में नदियाँ बहाई जा सकती हैं। पीसा की मीनारें, चीन की दीवार व ताजमहल परिश्रम के द्वारा ही बनाए जा सके हैं।