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पागल पेड़ (जातक कथाएँ)

कई सौ वर्ष पुरानी बात है, एक घने जंगल में दो पेड़ पास – पास ही थे । घने होने के कारण इन पेड़ों के नीचे अनेक जंगली जानवर रहने लगे थे, जिन में शेर, बाघ, चीता आदि भी थे ।

यह जानवर जंगली जानवरों और पक्षियों का शिकार करके लाते और आराम से इन वृक्षों के नीचे बैठकर खाते थे। और बची हुई हड्डियां वृक्ष के नीचे पड़ी रहती थीं, उनसे बदबू आती थी।

बदबू के कारण वृक्षों को काफी चिन्ता होने लगी। इससे सारा वातावरण दूषित हो गया था।

एक पेड़ ने दूसरे पेड़ से कहा – “अरे भाई इन जानवरों ने तो हमारा दिमाग खराब कर दिया है। जब तक हम इन्हें नीचे से भगाएँगे नहीं, तब तक हमें ताजी हवा नहीं मिल सकेगी। मगर भाई इनके बिना हमारी रक्षा कौन करेगा? तुम नहीं जानते कि इन जानवरों से मानव डरता है जो यहां तक नहीं आता। यदि ये जानवर यहां से भाग गये तो यह इन्सान हमें काट कर जला देगें।”

दूसरे पेड़ ने कहा- “तुम इसकी चिन्ता न करो यार, मुझे तो केवल डर लगता है इस गन्दगी से, जिसके कारण मेरा दिमाग खराब हो रहा है।”

“सोच लो दोस्त वैसे यह सौदा घाटे वाला है।” पेड़ ने कहा।

“तुम नहीं समझते हो, मैं समझता हूं कि यह गंदगी मेरे ऊपर बहुत बड़ा वजन है इसका परिणाम भले ही कुछ भी हो मैं इन्हें एक बार तो अवश्य भगाऊंगा ।”

दूसरा पेड़ समझ गया कि यह पेड़ बहुत जिद्दी है, जिद्दी लोग अपनी मूर्खता के कारण ही दुःख पाते हैं, यही सोच कर वह बेचारा चुप हो गया।

दूसरे दिन आंधी आयी ।

इसके साथ ही उस वृक्ष ने जोर से हिलना शुरू कर दिया, इसी चक्कर में सारे जानवर भाग गये। पेड़ बोला – “देखा मेरी चाल, भाग गये सब।”

“हाँ मित्र तुम्हारी चाल सफल हो गई, अब हमें अच्छी हवा खाने को मिल सकेगी”, लेकिन वह कुछ कहते – कहते रुक गया।

मैं समय आने पर ही बताऊंगा।