काव्यांश – क्यों न उठा लेता निज संचित
क्यों न उठा लेता निज संचित, कोष भाग्य के बल से ?
ब्रह्मा से कुछ लिखा भाग्य में
मनुज नहीं लाया है,
अपना सुख उसने अपने
भुजबल से ही पाया है।
प्रकृति नहीं डरकर झुकती है
कभी भाग्य के बल से,
सदा हारती वह मनुष्य के
उद्यम से; श्रमजल से ।
ब्रह्मा का अभिलेख पढ़ा
करते निरुद्यमी प्राणी,
धोते वीर कुअंक भाल का
बहा भ्रुवों से पानी।
भाग्यवाद आवरण पाप का
और शस्त्र शोषण का,
जिससे रखता दबा एक जन
भाग दूसरे जन का ।
पूछो किसी भाग्यवादी से,
यदि विधि – अंक प्रबल है,
पद पर क्यों देती न स्वयं
वसुधा निज रतन उगल है?
उपजाता क्यों विभव प्रकृति को
सींच – सींच वह जल से ?
क्यों न उठा लेता निज संचित
कोष भाग्य के बल से ?
काव्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :-
प्रश्न 1. प्रकृति कैसे मनुष्य से डरकर झुकती है?
प्रश्न 2. निरुद्यमी प्राणियों के लिए कवि क्या कहते हैं?
प्रश्न 3. कवि भाग्यवादी व्यक्ति से क्या प्रश्न पूछना चाहता है?