लेख : भारत की आधुनिक समस्याएं
भारत की आधुनिक समस्याएं
समस्याएँ धार्मिक, साम्प्रदायिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, पारिवारिक, राजनीतिक, आर्थिक
कई प्रकार की होती या हो सकती हैं। यों तो हर युग-काल में किसी न किसी तरह की समस्या
से मानव सभ्यता और प्रत्येक वह भूभाग कि जिसे देश कहा जाता है, किसी न किसी समस्या से आक्रान्त रहते ही हैं, पर कई बार किसी देश-विशेष के सामने सभी तरह की समस्याओं का अम्बार तक लग जाया करता है। आज अपने देश भारत की दशा कुछ ऐसी ही बनी हुई है। वह सभी समस्याओं से आक्रान्त हो कर उन पर पार पाने के लिए बुरी तरह जूझ रहा है। उसके सामने राष्ट्रीय समस्याएँ तो है ही, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अनेक समस्याओं से भी उसे दो-चार होना पड़ रहा है।
जहाँ तक आधुनिक भारत की धार्मिक – साम्प्रदायिक समस्याओं का प्रश्न है, ब्रिटिश शासन ने अनेक राजत्व काल में उन्हें कुछ इस तरह उभारा कि भारत को दो टुकड़ों में बंट जाना पड़ा। ऐसा होने के बाद भी जाते-जाते एक तरह से विरासत के रूप में ये दोनों समस्याएँ भारत को दे गया है। फलस्वरूप आज भी समय-समय पर उभर कर ये समस्याएँ अपना भयावह ताण्डव दिखाती रहती हैं। जन-जीवन इन के कारण अक्सर बाधित एवं अस्त-व्यस्त होता ही रहता है। इसी प्रकार आज भारतीय संस्कृति के सामने भी पश्चिम के अनुकरण के बढ़ते जाने और भौंडी नकल के कारण बहुत बड़ा संकट उपस्थित है। उसमें असांस्कृतिक तत्त्वों का बड़ी बुरी तरह से मिश्रण होता जा रहा है। हमारी साँस्कृतिक विरासत को मात्र उपभोक्ता तत्त्वों से मिश्रित कर देने का पश्चिमवादियों द्वारा बाकायदा षड्यंत्र चलाया जा रहा है। अंग्रेजी अखबार, मैगजीन्स, रेडियो, सिनेमा, टेलिविजन सभी एक साथ इस दिशा में सक्रिय हैं। इनमें छपने और प्रसारित होने वाले नग्न – अश्लील विज्ञापन, गीत, नृत्य, हिंसा और बलात्कार दृश्य वाली फिल्में आदि सभी मिल कर भारतीय संस्कृति का गला घोंट कर रख देना चाहती हैं। बहुत ही विकट समस्या है यह।
सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर भी आज का भारत अनेक विकट समस्याओं से आक्रान्त हो रहा है। यों कहने को शिक्षा का प्रचार बढ़ गया है, ज्ञान-विज्ञान के आधुनिक प्रकाश ने मानव-चेतना को नए ढंग से उजागर किया है। कुरीतियों, गलत धारणाओं और अन्य विश्वासों पर तीखे प्रहार किए हैं। हम अपने आप को मानते और कहते भी खुले दिमाग वाले आधुनिक हैं, फिर भी व्यवहार के स्तर पर हमारी चेतना मध्य काल से आगे बढ़ी नहीं लगती। आज भी सामाजिक स्तर पर दिखावा, कुरुचियों-कुरीतियों को पहले से कहीं अधिक बढ़ावा दिया जाता है। दहेज जैसी कुप्रथाएँ, छोटे-छोटे रीति-रिवाजों के विराट प्रदर्शन, उस समय माँस-मदिरा का खुला सेवन, छोटे-बड़े सभी को ऐसे कार्यों में सहभागिता, इस पर भी परस्पर बढ़ती दूरी, परिवारों और सम्बन्धों में आता लगातार दुराव और विघटन तरह-तरह की कुण्ठाएँ, आज भी घर-परिवारों और पुरुष समाज में नारी-अधिकारों की अवहेलना और उन्हें एक उपभोक्ता सामग्री की तरह मान कर उन का यौन शोषण, बच्चों के प्रति माँ-बाप की उपेक्षा और बाल मजदूरी के रूप में उन का भी शोषण पारिवारिक, सामाजिक भयावह समस्याओं का ही तो रूप है। आज पिता-पुत्र, भाई-भाई, पति-पत्नी के सम्बन्धों में आ गई औपचारिकता और व्यापारिक दृष्टिकोण आदि को और क्या नाम दिया जा सकता है ?
राजनीतिक दृष्टि से तो संकट को दोहरा कहा जा सकता है। भारत को इस दृष्टि से तो राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दोहरे दबावों से गुजरना पड़ रहा है। कई तरह के भीतरी-बाहरी संकटों से गुजरना अनिवार्य हो गया है। छोटे-बड़े मात्र सत्ता की कुर्सी के भूखे अनेक दल जातिवाद को उभार कर सत्ता पाना या बनाए रखना चाहते हैं, तो कई अन्तर्राष्ट्रीय शक्तियाँ स्वार्थी और देशद्रोही तत्त्वों को साथ मिलाकर देश को छोटे-बड़े कई टुकड़ों में बाँट कर अपना आधिपत्य जमाना चाहती हैं। इस तरह की समस्याएँ और संकट देश के सभी सीमांचल प्रदेशों में विद्यमान हैं, फिर चाहे वह पंजाब, काश्मीर, मणिपुर, असम, मिजोरम आदि कोई भी सीमांचल स्थित प्रदेश क्यों न हो। इन सभी जगहों पर भारत को कई तरह के भीतरी बाहरी उग्रवाद से बुरी तरह से जूझना पड़ रहा है। संकल्पहीन, बेपैन्दे के लोटे की सी सरकारें, अपनी सत्ता की कुर्सी बचाए रखने के लिए तरह-तरह की राजनीतिक घोषणाएँ तो करती रहती हैं, पर सकारात्मक कदम उठा पाने में जाने क्यों अपने को असमर्थ पाती हैं ?
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी भारत को आज तरह-तरह के दबावों में रहना पड़ रहा है, वह यदि शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए भी अणु-शक्ति का विकास करना चाहता है, अपनी सुरक्षा के लिए मिसाईल आदि बनाना चाहता है, तब भी उसे आर्थिक-राजनीतिक नाकेबन्दी और बहिष्कार की धमकियाँ दी जाती हैं। कई प्रकार के लादे गए समझौते पालने को बाध्य किया जाता है। आर्थिक बोझ से आज जन्म लेने वाला बच्चा भी लद जाता है। खाद्य पदार्थों का अभाव, तेल का संकट, कई तरह के आर्थिक घोटाले, राष्ट्र भंजन शक्तियों की सक्रियता, राजनीति पर माफिया गिरोहों का अधिकार, रिश्वत, भ्रष्टाचार और उस पर निरन्तर कसता आम आदमी का काफिया – सिवाए समस्याओं के भारत के पास है ही क्या ?
इन समस्याओं पर पाने के लिए जिस प्रकार की दृढ़ इच्छा – शक्ति और संकल्प की आवश्यकता हुआ करती है, वह शासक दल तो क्या किसी भी दल में दिखाई नहीं देती। सो भगवान है, मालिक है, इस देश का, जो जिस किसी तरह इसे जीवित चलाए जा रहा है।