स्वतंत्रता प्राप्ति के पचास वर्ष
15 अगस्त, सन् 1947 के दिन एक लम्बे संघर्ष के बाद भारत ने अपनी खोई हुई स्वतंत्रता फिर से प्राप्त की थी। तब से लेकर आज तक लगभग पचास वर्ष बीतने को आ रहे हैं। अब तक लगता है, तब का सभी कुछ बदल गया है। इस बदलाव के परिणामस्वरूप बहुत कुछ अच्छा हुआ है। भारत ने प्रगति और विकास की राह पर कई मील के पत्थर तोड़े हैं, कई नए भी स्थापित किए हैं। खोया भी कम नहीं। क्या खोया और क्या पाया है, उसका लेखा-जोखा संक्षेप में कर लेना अच्छा होगा।
जिन राष्ट्र-नेताओं ने लम्बा संघर्ष कर के हमें स्वतंत्रता दिलाई थी, उनमें से आज एक भी हमारे बीच विद्यमान नहीं है। उन के जीवन, कार्य, नीतियाँ और नैतिकताएँ आज सभी एक निरन्तर भुलाई जा रही कहानी बन रही हैं। जिन बच्चों ने उस समय के आस-पास जन्म लिया था, आज वे खूसट प्रौढ़ बन चुके हैं – ऐसे प्रौढ़ कि जिन के लिए नीति और नैतिकता का कोई मान और मूल्य नहीं। स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छन्दता और उद्दण्डता ही बन पाया है। तब जो उभार की आयु पर अर्थात् युवक थे, उनमें से अनेक आज वृद्ध होकर अपनी आयु पूरी कर चुके हैं। जो जीवित हैं, उन्हें आज भी स्वतंत्रता-संघर्ष की अंग्रेजी राज की न्याय व्यवस्था और रौब की, पुलिस की ईमानदाराना व्यवहार की और सामाजिक प्रेम व भाईचारे की, सुख-दुःख सांझे मानने की जीवन्त कहानियाँ याद हैं। यह भी याद है कि तब प्रत्येक उपयोगी वस्तु कितनी सस्ती और सुलभ थी कि गरीब – से – गरीब आदमी भी जी लेता था। लेकिन आज वैसा कुछ भी बाकी नहीं रह गया है। वे सम्बन्ध, वे रिश्ते-नाते, सामाजिक सरोकार, न्याय व्यवस्था, पुलिस की न्यायप्रियता, वह सस्ते और सुलभ जीवनोपयोगी पदार्थ कुछ भी तो बाकी नहीं रह गया है। आज महँगाई की मार तो है ही, पुलिस की मनमानी और न्याय व्यवस्था की मार भी सहनी पड़ रही है। रिश्ते-नाते, मानवीय सरोकार सभी कुछ विघटित हो चुका या हो रहा है।
अपना संविधान बनाना, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की पहली उपलब्धि है। तटस्थ विदेश नीति बना कर उस पर आज तक डटे रहना दूसरी महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है। देश के विकास के लिए आठ-आठ योजनाओं को सफल पार कर लेना भी महती उपलब्धि कही जा सकती है। अनेक तरह के भ्रष्टाचारों, विडम्बनाओं और लाँछन – प्रतिलाँछनों के चलते हुए भी लोकतंत्र की नित्य प्रति जर्जरित हो रही नैया को भंवर में फंस कर भी ज्यों – त्यों खेते रहना और बनाए रखना भी एक बहुत बड़ी सभी देशी-विदेशियों की दृष्टि में एक आश्चर्य प्रद उपलब्धि है। शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, उद्योग-धन्धे, कल – कारखाने सभी का स्वतंत्र भारत में असीम विस्तार हुआ और आज भी निरन्तर हो रहा है। रेल, बस, वायुयान तथा अन्य सभी तरह के यानों का उपयोग कर यातायात के साधनों में भी देश ने बहुत तरक्की की है, चाहे एक बार टूट जाने पर किसी सड़क को दुबारा बना पाना बड़ा कठिन कार्य हो जाता है। मनोरंजन के सभी नवीनतम साधन भी यहाँ प्रचुरता से बनने लगे हैं। तकनीक और मशीनों का, बढ़िया और सिले-सिलाए कपड़ो, जूतों आदि का निर्यात किया जा रहा है। जनसंख्या तो बढ़ी ही है, खाद्य पदार्थों की भी कमी नहीं, वे बहुत महँगे मिलते हैं और इस कारण आम आदमी को जीने के लिए नाकों चने चबाने पड़ रहे हैं, यह अलग बात है।
आज का युग अणु-शक्ति का है, अन्तः क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अणु-शक्तियों के विस्तार का है और इस दिशा में भी भारत किसी से पीछे नहीं है। उसने अन्तर्राष्ट्रीय मिसाइलों का निर्माण तो कर ही लिया है, अन्तरिक्ष- ज्ञान – विज्ञान और उपग्रह – विज्ञान में भी भारत पीछे नहीं है। मतलब यह कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले जहाँ सुई से लेकर वायुयान तक सभी कुछ विदेश से आता था, अब वह सब और उस से भी कहीं बढ़ कर, उन्नत भारत में बनने लगा है। भारत हर चीज़ का निर्यात भी कर रहा है। भारत में चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के कारण ही बाल – मृत्यु दर एवं कम आयु वालों की औसतन आयु दर बढ़ गई है। सभी संघातक बीमारियों के इलाज – उपचार यथा संभव होने लगे हैं। इस प्रकार प्रगति पथ पर बढ़ता भारत इक्कीसवीं सदी के द्वार खटखटा रहा है।
भारत ने जो खोया है, उसकी भरपाई कतई संभव नहीं। सब से बढ़कर अपना राष्ट्रीय चरित्र खो कर अनेक प्रकार के अनाचार – भ्रष्टाचार का अभिवर्द्धन किया है। धर्म – आध्यात्मिकता, समाज, राजनीति आदि प्रत्येक क्षेत्र को राष्ट्रीय चरित्र एवं मूल्य-विहीनता से भर दिया है। चरित्र के साथ – साथ, घर – परिवार और सभी तरह के उदात मानवीय मूल्यों का भी विघटन किया है। आज का सब से बड़ा संकट आस्था – विहीनता है, जो कई तरह से पतन का कारण बन रहा है। लगता है कि आज हमारा स्थितियों पर कतई कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। आचार – विचार, सदाचार, आदर्श और मानवीयता की नाव बीच में मंझधार में फंस कर डूब जाने को आतुर है। कम – से – कम इस समय तो उसे पार उतार पाने में समर्थ कहीं कोई भी नजर नहीं आ रहा – कतई कोई नहीं।