हिन्दी – लिंग्वा फ़्रांका
कौन किस भाषा में बोलता और लिखता है, यह मोटे तौर पर इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति का जन्म कहाँ हुआ है।
दूसरी ओर, मातृभाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को सीखने की आवश्यकता है कि किस देश का प्रुभत्व दुनिया में ज्यादा है। जिस देश का प्रभुत्व होगा, वहाँ की भाषा भी दुनिया सीखेगी।
इतिहास और वर्तमान इस बात के गवाह हैं कि शक्तिशाली लोगों की मातृभाषा विश्व स्तर पर सीखी, बोली और लिखी जाएगी और लिंग्वा फ्रांका बनेगी।
लिंग्वा फ्रांका का अर्थ है- इस्तेमाल में ली जाने वाली वो सबसे प्रभावशाली भाषा, जो इस्तेमाल करने वालों की मातृभाषा न हो। इस पैमाने पर देखें तो बीते तीन हजार साल में ग्रीक, लैटिन, portugese, स्पेनिश, फ्रेंच और अंग्रेजी अलग-अलग दौर में प्रभावशाली रही हैं।
इंग्लैंड में स्थिति ऐसी थी कि राजघराने में शिक्षा फ्रेंच भाषा में ली जाती थी। सभ्य समाज में अंग्रेजी गरीबों की भाषा और दरिद्रता की निशानी मानी जाती थी।
17वीं सदी के अंत में स्पेन का युद्ध इंग्लैंड से हुआ, जिसमें इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ की जीत हुई। कुछ ही वर्षों में इंग्लैंड की नौसेना विश्व में सबसे शक्तिशाली बनी और अमेरिका से लेकर चीन तक इंग्लैंड का साम्राज्य फैल गया।
विश्व की अधिकतम पूंजी, तकनीक और सैन्य शक्ति में इंग्लैंड का कोई मुकाबला नहीं बचा। लिहाजा अंग्रेजी भी लिंग्वा फ्रांका बन कर उभरी। फिर 1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के अंत में इंग्लैंड ने अपना वर्चस्व खो दिया, लेकिन चूंकि अमेरिका भी अंग्रेजी भाषी था और पूंजी, तकनीक और सैन्य शक्ति में प्रथम राष्ट्र बनकर उभरा, इसलिए अंग्रेजी का दबदबा न सिर्फ बना रहा, बल्कि यह और बढ़ा।
अंग्रेजी आज भी ताकतवर है और तब तक ताकतवर रहेगी, जब तक विश्व के विश्व की वित्तीय, सैन्य और तकनीकी ताकत अंग्रेजी भाषियों के पास रहेगी।
आज जो हिंदी का प्रभुत्व बढ़ रहा है, वो इसलिए है क्योंकि भारत का प्रभाव भी दुनिया में बढ़ रहा है। जैसे जैसे यह बढ़ेगा, हिंदी भी बढ़ेगी।
हिंदी लिंग्वा फ्रांका के तौर पर दुनिया में और विस्तार पाए, इसके लिए जरूरी है कि भारत को अपनी वित्तीय, सैन्य और तकनीकी ताकत को बढ़ाना होगा। अंग्रेजी भाषा से लड़कर या उसका निषेध करके हिंदी लिंग्वा फ्रांका नहीं बन सकती।
अंतरराष्ट्रीय सम्बंध शिक्षा संस्थान ने अंतरराष्ट्रीय मामलों की पढ़ाई करने वालों के लिए पांच भाषाएं सुझाई हैं। इनमें हिंदी भी है।
संस्था का कहना है कि आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है।यहां 24 आधिकारिक भाषाएं हैं, परन्तु हिंदी लगभग सब जगह बोली जाती है और यह सबसे अधिक तेजी से बढ़ भी रही है।