काम में संतोष धन से बड़ा है।
एक लकड़हारा था। वह 200 रुपए प्रति घण्टे की दर से काम करता था।
एक सामाजिक शोधकर्ता ने प्रयोग किया और उस लकड़हारे से कहा कि अगर वह उसके बाग में काम करेगा तो दोगुना वेतन देगा।
लकड़हारे ने हामी भर दी। शोधकर्ताओं ने उसे एक कुल्हाड़ी दी और कहा कि यह पेड़ काटो, लेकिन कुल्हाड़ी का धार वाला हिस्सा इस्तेमाल नहीं करना, बल्कि मोटा गोल हिस्सा इस्तेमाल करना।
हैरान लकड़हारे ने पूछा – फिर यह पेड़ कैसे कटेगा?
शोधकर्ता ने कहा – इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तुम्हें 400 रुपए प्रतिघंटा दे रहा हूँ।
लकड़हारे ने कहा – ठीक है, मुझे भी पैसे से मतलब है।
वह 5 दिन पेड़ पर कुल्हाड़ी का मोटा हिस्सा मारता रहा, पर पेड़ पर असर नहीं हुआ। फिर छठवें दिन शोधकर्ता के पास पहुंचा और बोला – मैं काम छोड़ रहा हूँ।
शोधकर्ता मुस्कुराते हुए बोला – पर मैं तुम्हें दोगुना वेतन दे रहा हूँ।
तब लकड़हारा बोला – मुझे काम में मज़ा नहीं आ रहा। मेरे काम में कोई बदलाव तो आना चाहिए या फिर कोई नतीजा तो निकलना चाहिए। अगर बदलाव नहीं आता है या नतीजा नहीं निकलता है तो मुझे काम करने में संतुष्टि नहीं मिलेगी।
सीख – जब तक आपको काम में आनन्द न आए, तब कितना भी धन मिले, संतोष नहीं मिलता।