उत्साह विश्वास से उत्पन्न होता है

  • अपमान का सामना करना व्यक्तिगत विकास के लिए बहुत जरूरी है।
  • शरीर के साथ-साथ अपनी आत्मा की मजबूती पर भी काम करना चाहिए
  • क्रोध की शुरुआत गलती से होती है और अंत प्रायश्चित से होता है।
  • ज्यादा शब्दों में थोड़ा कहने की बजाय कम शब्दों में ज्यादा बताने की कोशिश करनी चाहिए।
  • किसी को इतनी आजादी नहीं देनी चाहिए कि वह हमसे ऐसा कोई काम करवा ले या कुछ बोलने को मजबूर कर दे, जो हमारे लिए अच्छा न हो।
  • अपना काम अच्छे तरीके से करने के बाद सन्तुष्ट होकर आराम कीजिए। दूसरे आपके बारे में क्या बात करते हैं, यह उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए।
  • यदि हमारे पास मौन से ज्यादा कीमती शब्द हों, तब ही बोलना चाहिए, अन्यथा चुप रहना ही बेहतर है।
  • जब हमारे मन में विश्वास होता है कि जो हम कर रहे हैं, वह सही है, तो उत्साह या भावनात्मक जुड़ाव अपने आप आ जाता है।
  • अगर हम जानते हैं, जो हम कर रहे हैं, वह गलत है, तो हम उसे लेकर कभी उत्साहित नहीं होते।
  • लोगों का समर्थन जीतने के लिए हमें अपने शब्दों और कार्यों में विश्वास होना चाहिए।
  • उत्साह विश्वास से उत्पन्न होता है। अपनी बातों में उत्साह भरें। अपनी आवाज में जोश भरें, उत्साह पैदा करें। जितना हम चीज़ों को जानेंगे, उतना ज्यादा उत्साही होंगे।