दोहे : रहीम जी
निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।
उत्तर : (क) प्रेम संबंध एक बार टूटने से दुबारा नहीं बनते। यदि दुबारा बनते भी हैं तो उनमें पहले के समान घनिष्ठता नहीं रहती। मन में अविश्वास बना रहता है।
(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।
उत्तर : (ख) मनुष्य को अपना दुख सबके सामने प्रकट नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें अपने हृदय में छिपाकर रखना चाहिए। लोग उसे जानकर केवल मज़ाक उड़ाते हैं। कोई भी उन दुःखों को बाँटता नहीं है।
(ग) रहिमन मूलहिं सीचिबो, फूलै फलै अघाय।
उत्तर : (ग) अनेक देवी-देवताओं की भक्ति करने की अपेक्षा अपने इष्टदेव के प्रति आस्था रखना अधिक अच्छा होता है। जिस प्रकार जड़ को सींचने से पेड़ के फूल-पत्तों तक का पोषण हो जाता है। उसी प्रकार इष्ट के प्रति ध्यान कर लें तो सांसारिक सुख स्वयं मिल जाते हैं।
(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।
उत्तर : (घ) दोहा छंद आकार में छोटा है, परंतु अर्थ बहुत गहरा लिए हुए होता है। उसका गूढ़ अर्थ ही उसकी गागर में सागर भरने की प्रवृत्ति को स्पष्ट कर देता है। ठीक वैसे ही जैसे नट कुंडली को समेटकर रस्सी पर चढ़ जाता है।
(ङ) नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
उत्तर : (ङ) हिरण संगीत पर मुग्ध होकर शिकारियों को अपना जीवन तक दे देता है अर्थात अपना अस्तित्व समर्पित कर देता है तथा मनुष्य दूसरों पर प्रसन्न होकर उसे धन देता है और उसका हित भी करता है। किंतु जो दूसरों पर प्रसन्न होकर भी उसे कुछ नहीं देता, वह पशु तुल्य होता है।
(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।
उत्तर : (च) प्रत्येक मनुष्य का अपना महत्त्व होता है। समयानुसार उसकी उपयोगिता है। कवि ने तलवार और सुई के उदाहरण द्वारा यह तथ्य सिद्ध किया है। जहाँ छोटी वस्तु का उपयोग होता है वहाँ बड़ी वस्तु किसी काम की नहीं होती और जहाँ बड़ी वस्तु उपयोगी सिद्ध होती है वहाँ छोटी वस्तु बेकार साबित होती है। सुई जो काम करती है वह काम तलवार नहीं कर सकती और जिस काम के लिए तलवार है वह काम सुई नहीं कर सकती। हर चीज़ की अपनी उपयोगिता है।
(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।
उत्तर : (छ) मोती में यदि चमक न रहे, वह व्यर्थ है। मनुष्य यदि आत्म-सम्मान न बनाए रखे तो बेकार है। सूखा आटा पानी के बिना किसी का पेट भरने में सहायक नहीं होता। पानी के बिना मोती, मनुष्य और चून नहीं उबर सकते। मोती की चमक, मनुष्य का आत्म-सम्मान व आटे की गूँथना सभी पानी के द्वारा ही संभव है।