स्मृति – श्री राम शर्मा
पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में लेखक श्रीराम शर्मा ने बाल्यावस्था की एक घटना का सजीव चित्रण किया है। इस कहानी का घटनाक्रम इतनी रोमांचक शैली में लिखा गया है कि प्रत्येक क्षण, परिस्थिति की गंभीरता और सामने आए खतरे का वर्णन पाठक के कौतुहल को आदि से अंत तक बनाए रखता है। बच्चों को सहज जिज्ञासा एवं क्रीड़ा कैसे कभी-कभी उन्हें कठिन जोखिमपूर्ण निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा करती है, इसका बहुत ही सजीव वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
सन् 1908 की बात है। दिसंबर का अंत व जनवरी का प्रारंभ था। कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। बूँदाबांदी के कारण सर्दी बढ़ गई थी। लेखक उस समय झरबेरी से बेर तोड़कर खा रहा था कि भाई का बुलावा आ गया। वह डरते-डरते घर में घुसा । भाई साहब ने मक्खनपुर के डाकखाने में पत्र डाल आने का आदेश दिया। माँ ने कुछ चने भुनवाने को दे दिए। दोनों भाई अपना-अपना डंडा लेकर घर से चल पड़े। चिट्ठियों को टोपी में रख लिया। वह अपने डंडे से कई साँपों को मार चुका था, इसलिए उसे डंडे का बहुत सहारा था। दोनों उछलते-कूदते चार फर्लांग की दूरी पार करते हुए कुएँ तक पहुंच गए जिसमें एक काला साँप रहता था। लेखक अपने स्कूल के साथियों के साथ कुएँ में पड़े हुए साँप पर ढेला जरूर मारा करता था। ढेला लगते ही साँप फुंफकार उठता था। इस खेल में उसे तथा उसके साथियों को बहुत आनंद आता था।
जैसे ही कुआँ सामने आया लेखक के मन में साँप की फुफकार का मजा लेने की बात आ गई। उसने ढेला उठाया और टोपी को उतारते हुए कुएँ में ढेला फेंक दिया। टोपी के नीचे रखी हुई तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में जा गिरी। चिट्ठियां बहुत जरूरी थी। लेखक को भाई की पिटाई का डर था। दोनों भाई रोने लगे। तब उन्हें माँ की गोद याद आ रही थी। दिन छिपने को था और घर में पिटाई का डर था। लेखक ने कुएँ में घुसकर चिट्ठियां लाने की सोची। छोटा भाई रो रहा था। उनके पास कुल मिलाकर पाँच धोतियां थीं। उन सभी धोतियों को आपस में बाँधा गया। धोती के एक सिर पर डंडा बाँधकर उसे कुएँ में डाल दिया। दूसरा सिरा एक गांठ लगाकर छोटे भाई को दे दिया और उसे मजबूती से पकड़ने के लिए कहा। लेखक के छोटे भाई को विश्वास दिलाया कि वह कुएँ के नीचे पहुंचते ही साँप को मार देगा।
लेखक धोती पकड़कर नीचे उतरा। अभी वह धरातल से चार-पाँच फुट ऊपर था कि उसे फन फैलाए लहराता हुआ सांप दिखाई दिया। लेखक बोचों बीच उतर रहा था। डंडा नीचे लटक रहा था। कुएँ का धरातल अधिक चौड़ा न था। इसलिए उसे मारने के लिए नीचे उतरना जरूरी था। उसे अपना पाँव साँप से कुछ ही फुट की दूरी पर रखना पड़ा।
एकाएक उसने अपने पाँव को कुएँ की बगल पर टिका दिया। इससे मिट्टी नीचे गिरी। साँप फुफकारा। लेखक के पाँव दीवार से हट गए। थोड़ी ही देर में उसने अपने पाँव साँप के सामने धरातल पर टिका दिए। अब दोनों आमने-सामने थे। वे एक-दूसरे को देख रहे थे। इतनी खुली जगह नहीं थी कि डंडे को घुमाया जा सके। बस एक ही तरीका था कि साँप को कुचल डाला जाए परंतु यह खतरनाक था।
लेखक ने देखा कि चिट्ठियां नीचे पड़ी थी। उसने डंडे से चिट्ठी को सरकाना शुरू कर दिया। साँप ने अपना फन पीछे कर लिया परंतु जैसे ही डंडा चिट्ठी के पास पहुंचा साँप ने डंडे पर जोर से डंक मारा। डर के मारे लेखक के हाथों से डंडा छूट गया। वह खुद भी उछल पड़ा। उसने देखा कि डंडे पर साँप के डंक के तीन-चार निशान थे। इस संघर्ष की आवाज सुनकर ऊपर खड़े भाई की चीख निकल गई। उसने सोचा कि लेखक का काम तमाम हो गया।
जब लेखक ने लिफाफा उठाने का प्रयास किया तो साँप ने वार किया। साँप का पिछला भाग लेखक के हाथों से छू गया। डंडे के लेखक की ओर खिंच आने से साँप का आसन बदल गया। लेखक ने तुरंत लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिए और उन्हें धोती के छोर में बाँध दिया और छोटे भाई ने उन्हें ऊपर खींच लिया।
अब लेखक को ऊपर चढ़ना था। यह ऊँचाई 36 फुट थी। उस समय उसकी अवस्था ग्यारह (11) वर्ष थी। इस चढ़ाई में उसकी छाती फूल गई और धौंकनी चलने लगी। ऊपर पहुँचकर वह काफ़ी देर तक बेहाल पड़ा रहा। लेखक ने 1915 ई. में मैट्रिक पास करने के बाद यह घटना माँ को सुनाई। माँ ने उसको अपनी गोद में छिपा लिया। लेखक को वे दिन बहुत अच्छे लगते थे।