अनुच्छेद लेखन : आधुनिक नारी और नौकरी
नई तथा आधुनिक शिक्षा तथा देश की स्वतंत्रता ने नारी को घर की चारदीवारी से बाहर निकलने का अवसर दिया है। वह जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही है। पर्दा या घूँघट या पुराना पहनावा, पुराने रीतिरिवाज़ और परंपराएँ आज एक मज़ाक या हास्य-परिहास का विषय बन चुकी हैं। आज नारी जीवन के हर क्षेत्र में काम कर रही है। पुरुषों से भी बढ़कर अपनी प्रतिभा और कार्यक्षमता का परिचय दे रही है। नारी-स्वतंत्रता के हिमायतियों का कहना है कि जब तक नारी धन की दृष्टि से स्वावलंबी नहीं हो जाती, अपने पाँवों पर खड़ी नहीं हो जाती, तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। महँगाई की दृष्टि से इस प्रश्न पर विचार किया जाता है तो कहा जाता है कि आज का जीवन बड़ा महँगा हो गया है। स्तर और ढंग का जीवन जीने के लिए बहुत धन की आवश्यकता होती है। जब तक घर के सभी बालिग सदस्य कमाई न करें, तब तक घर-परिवार की आवश्यकताएँ पूरी कर पाना संभव नहीं हो सकता। मध्यवर्गीय परिवार की नारियाँ आर्थिक विवशता, घर-परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए नौकरी करती हैं। असमर्थ और लोभी-लालची किस्म के युवक कमाऊ पत्नियाँ खोजा करते हैं। कहते हैं कि नौकरी करनेवाली लड़की के लिए वर शीघ्र और अच्छा मिल जाता है, परंतु यह सही नहीं है। नौकरी-पेशा नारी की कार्यक्षमता, सूझबूझ पर प्रश्न चिहन नहीं लगाया जा सकता किंतु अभी तक वह साहस उसमें नहीं आ पाया है जो स्वतंत्र-स्वावलंबन और पूर्णतया आधुनिक बनने के लिए आवश्यक है। इस अभाव के कारण ही वह अपने पुरुष सह-कर्मियों से दबी-घुटी रहती है। अपने को असहाय अनुभव करने लगती है। कई नारियों ने गाड़ी या कार चलाना, क्लबों में जाकर नाचना-गाना, सिगरेट-शराब पीने जैसे कामों को ही आधुनिकता मान लिया है। कम कपड़े पहनकर दफ्तरों में पहुँचना और सबकी दृष्टियों का केंद्र बन जाना भी कइयों ने आधुनिकता मान लिया है। नारी और नौकरी न तो एक-दूसरे के पर्याय हैं, न आधुनिकता के ही। सो आधुनिकता या आधुनिक होने का अर्थ समय के रुख को पहचानकर सबल और दृढ़ बनकर उचित मानवीय कर्तव्यों का पालन करते जाना, चाहे वह नारी नौकरी करे या घर-परिवार में व्यस्त रहे जिससे नारी का व्यक्तित्व निखरे, सम्मान बना रहे, यही उसकी आधुनिकता है।