भाषण कला
भाषण वह विशिष्ट कला है जो श्रोता के मन में जोश व उत्साह पैदा कर देती है। वास्तव में यह ऐसी कड़ी है जो वक्ता और श्रोता के मध्य संबंध स्थापित करती है। इसी के माध्यम से वक्ता एवं श्रोता के बीच संबंध स्थापित हो पाता है।
इसमें आत्म-प्रशिक्षण के माध्यम से ही वक्ता सफलता के सोपान पर चढ़ पाता है। वस्तुतः भाषणकर्ता अपने भाषण से पूर्व मन के साथ जो वार्तालाप करता है, उसकी ज्ञान प्रभा उस पर ही आश्रित रहती है, जिसे ‘चिंतन’ कहा जाता है।
इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं :
1. चिंतन आत्म विकास की सीढ़ी है।
2. भाषण का विषय पर केंद्रित होना।
3. भाषण की निश्चित अवधि।
4. भाषणकर्ता आवश्यक गुणों का धारक।