काव्यांश / पद्यांश
नर हो न निराश करो मन को।
निम्नलिखित काव्यांश के प्रश्नों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनकर लिखिए-
प्रभु ने तुमको कर दान किए,
सब वांछित वस्तु विधान किए।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो,
फिर है किसका वह दोष कहो?
समझो न अलभ्य किसी धन को,
नर हो न निराश करो मन को।
किस गौरव के तुम योग्य नहीं,
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं?
जन हो तुम भी जगदीश्वर के,
सब हैं जिसके अपने घर के।
फिर दुर्लभ क्या है उसके मन को?
नर हो, न निराश करो मन को।
करके विधि-वाद न खेद करो,
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो।
बनता बस उद्धम ही विधि है,
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को,
नर हो, न निराश करो मन को।
प्रश्न. वांछित वस्तुओं को प्राप्त न कर सकने में किसका दोष है?
(क) अकर्मण्य मनुष्यों का
(ख) समाज में व्याप्त असमानता का
(ग) निराश नर-नारियों का
(घ) निराशाजनक परिस्थितियों का
प्रश्न. इस काव्यांश से कवि के कौन-से विचारों का परिचय मिलता है?
(क) कवि अलभ्य धन अर्जित कर गौरव प्राप्ति के लिए प्रेरणा दे रहे हैं।
(ख) कवि बता रहे हैं कि भगवान जी के लिए सभी जन एक समान हैं।
(ग) कवि कर्मण्येवाधिकारस्ते का मार्ग अपनाकर कर्म करने को कह रहे हैं।
(घ) कवि कह रहे हैं निराशा त्यागकर नियति स्वीकार करनी चाहिए।
प्रश्न. इस काव्यांश से क्या प्रेरणा मिलती है?
(क) नर हैं, अतः निराश न हों
(ख) आशा के साथ जगदीश्वर पर भरोसा रखें
(ग) लक्ष्य है, अतः पाने का प्रयास करें
(घ) नियति निश्चित है, अतः प्रतीक्षा करें
प्रश्न. प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने विधिवाद पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
कथन (I) विधिवाद का खेद भाग्यवादी लोग करते हैं।
कथन (II) विधिवाद का खेद विधिवक्ता लोग करते हैं।
कथन (III) विधिवाद का खेद परिश्रमी लोग करते हैं।
कथन (IV) विधिवाद का खेद साधु-सन्त करते हैं।
निम्नलिखित विकल्पों पर विचार कीजिए तथा सही विकल्प चुनकर लिखिए।
(क) केवल कथन (I) सही है
(ख) केवल कथन (III) सही है
(ग) केवल कथन (II) सही है
(घ) केवल कथन (IV) सही है