अपठित गद्यांश : बाजार का जादू / बाजार दर्शन
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सर्वाधिक उपुयक्त उत्तर लिखिए-
बाजार का जादू / बाजार दर्शन
बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाज़ार की अनेकानेक चीज़ों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई, उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है।
प्रश्न. बाज़ार को जादू क्यों कहा गया है?
प्रश्न. ‘जादू की मर्यादा’ से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न. बाज़ार का असर कब अधिक होता है?
प्रश्न. मन खाली और जेब भरी होने पर बाज़ार का प्रभाव कैसे होता है?
प्रश्न. बाजार का सभी सामान उपयोगी लगने के क्या कारण हो सकते हैं?