लेख : मां तो बस मां है होती
माँ तो बस माँ है होती
“माँ का कोई धर्म कोई जाति नहीं होती
माँ तो बस माँ है होती, प्यारी माँ है होती।”
जी हाँ, मन की गहराइयों से निकला शब्द माँ सबसे पवित्र शब्द है। माँ बच्चे की जुबाँ से निकला पहला शब्द।
माँ जिसका वर्णन कागजों में या जुबानी किसी भी प्रकार नहीं हो सकता। लोग कहते हैं भगवान को हमने नहीं देखा।
अरे! झूठ कहते हैं वो, भगवान के साक्षात रूप में है माँ, इस धरती पर हमारे समक्ष है।
औरत अपने जीवन में अनेक किरदार जीती है। कभी माँ, कभी पत्नी, कभी बहन तो कभी बेटी और इन सब में ऊँचा किरदार माँ का है, जिसका कर्ज हम कभी चुका नहीं सकते।
अनेक पीरों, पैगम्बरों, राजाओं व वीरों को जन्म देने वाली माँ की महिमा का बखान नहीं हो सकता। भगवान भी मानव रूप में धरती पर अवतरित हुए तो उन्होंने माँ-बाप को सर्वेसर्वा माना। माँ की ममता पाने के लिए कृष्ण यशोदा के लल्ला ही बने रहे। माँ यशोदा को कभी असलियत पता नहीं चलने दी कि माँ की ममता से विमुख न हो जाएं। माँ यशोदा का जीवन कृष्ण से शुरू हो कृष्ण पर ही खत्म हो जाता था।
किसी शायर ने खूब कहा है-
“जीवन में हादसों से मुझे जिस शह ने बचाया होगा,
वह ज़रूर मेरी माँ की दुआओं का असर रहा होगा। “
जी हाँ, जीवन की तपती डगर पर पग-पग पर माँ अपनी ममता का आँचल बिछाती है। दुनिया की नजर से बचाती है, हजारों की भीड़ में पहचान लेती है।
कितने आश्चर्य की बात है खुशबू से ही माँ अपने जिगर के टुकड़े को पहचान लेती है।
क्या है ममता की कोई कीमत? क्या कोई तौल सकता है माँ की ममता को दौलत के तराजू में? कोई कितना ही बड़ा न्यायाधीश, मंत्री, प्रधानमंत्री, उद्योगपति, नेता, अभिनेता बन जाए पर माँ का तो वह ऋणी रहेगा।
“माँ की सेवा में सभी तीर्थ हैं बसते,
माँ के चरणों में स्वर्ग और जन्नत हैं बसते ॥”
मैं तो कहूँगी :
‘मंदिर ना जाना, मस्जिद ना जाना,
ऐ साथी माँ का दिल कभी न दुखाना।
सब तीर्थों का मिल जाएगा उत्तम फल,
जीवन में तू हो जाएगा सफल।”
माँ के लिए मैं क्या कहूँ, कुछ कह नहीं सकती। बस अंत में तूलिका को विराम तथा माँ को प्रणाम।
माँ तो बस माँ है।
माँ के होठों पर कभी बद्-दुआ नहीं होती।
माँ के आँचल में हमारे लिए सदा दुआ है होती ।
बस एक माँ है जग में जो बच्चे से कभी खफा नहीं होती ।