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कविता : मां


माँ एक रूप अनेक

तपते मरु में राहत देती

माँ बरगद की छाँव है।

दरिया से उफनते जीवन में

माँ, पार लगाती नाव है।

उबड़-खाबड़ राहों पर

माँ छोटी सी पगडंडी है।

भूखे, छोटे बच्चों के लिए

माँ चूल्हे पर पकती हंडी है।

खारे पानी की दुनिया में

माँ, मीठे पानी का झरना है।

हौले से समझाती माँ

नहीं किसी से डरना है,

झांसो फरेबों की दुनिया में।

माँ भोर का उजियारा

हर बच्चे के लिए

माँ का रूप जहाँ से न्यारा।

बच्चे का ये रूप दिनों दिन

माँ से ही निखरता जाता है

ढूँढो ना कहीं तुम ईश्वर को

वो माँ के रूप में ही मिल जाता है।