Baal Geet (बाल गीत)CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)EducationNCERT class 10thNursery RhymesPoemsPoetryPunjab School Education Board(PSEB)

कविता : न जाओ शहरों की ओर


न जाओ शहरों की ओर – श्री गोपाल व्यास


गाँव के लोग पलायन कर रहे हैं

शहरों की ओर,

सूख गई गाँव की आँतड़ियाँ,

दर्द सीने में भर

बेबस चली जाती हैं गायें

देहरी पर रँभाकर,

सूने घरों की आवाज़ें भी

अपने बाशिंदों को ढूँढ़ती फिरती हैं,

चाँदनी भी रोती है

खाली आँगनों में उतर,

शांत हैं गाँवों के लोकगीत

वह भी तो मौन दीवारों के थपेड़े सहते हैं।

गाँव के लोग…।

मैंने पूछा शहर में एक ग्रामीण से-

आखिर क्यूँ जाते हो शहरों की ओर,

प्रतिउत्तर मिलता है-

गाँवों में न शिक्षा है, न काम है,

प्रकृति भी नहीं देती साथ है,

पेट भरने की आशा व

नए समय के नए सपनों को

सँजोने के लिए गाँव के लोग…।

अगर गाँव यों ही खाली होते, रहे

तो हमारी सभ्यता व संस्कृति

लुप्त हो जाएगी,

ढहती दीवारों की खिड़कियों से

बह जाएगी मानवता

कौन जोड़ेगा लोकगीत?

कौन करेगा त्योहारों का स्वागत?

खेतों की रौनक भी तो न रहेगी।

सुनो मेरे गाँव के गोपालो!

गाँव को खाली कर

न जाओ शहरों की ओर।

श्रीगोपाल व्यास


कठिन शब्दों के अर्थ

पलायन = दूसरी जगह चले जाना, भागना (Migrating)

देहरी = दहलीज, दरवाज़ों के चौखट की नीचे वाली लकड़ी (Threshold)

बाशिंदा – रहने वाला, निवासी (Inhabitant)

प्रतिउत्तर= जवाब (In reply to a question)

लुप्त = गायब (Disappear)

रौनक = चमक (Splendor)