CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)EducationHindi GrammarNCERT class 10thParagraphPunjab School Education Board(PSEB)अनुच्छेद लेखन (Anuchhed Lekhan)

अनुच्छेद लेखन – दहेज प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप


दहेज प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप


दहेज-प्रथा वास्तव में नव-विवाहित वर-वधू को नई गृहस्थी बसाने के लिए शुभ कामनाओं के साथ कुछ उपहार देने के रूप में आरंभ हुई थी । आत्मीयजन, मित्र-बंधु, गली-मुहल्ले और गाँव-खेड़े के सभी लोग इस प्रकार के उपहार दिया करते थे। इससे वर-वधू पक्ष पर बोझ न पड़ सरलता से एक गृहस्थी बस जाया करती थी। किंतु बाद में धनिकों के दिखावा करने की प्रवृत्ति ने एक अच्छी-भली प्रथा को बिगाड़ दिया। आज तो यह प्रथा वास्तव में एक सामाजिक अभिशाप बन चुकी है। स्वार्थी और लालची लोग कन्या पक्ष से दान-दहेज के नाम पर इतनी अधिक माँग करने लगे हैं कि आम और मध्यवर्ग के लिए उसे पूरा कर पाना संभव नहीं होता। तब कई कन्याएँ आजीवन कुँआरी रह जाती हैं, कई स्वयं को बोझ मानकर आत्महत्या तक कर लेती हैं। कइयों की शादी हो जाने पर भी दहेज की माँग पूरी न होने पर उन्हें पीड़ित तो किया ही जाता है, जिंदा तक जला दिया जाता है। इस प्रकार कन्या और उसके माता- -पिता के लिए दहेज प्रथा एक अभिशाप बन चुकी है। यद्यपि सरकार ने इस कुरीति को रोकने के लिए दहेज निरोधक कानून लागू किए हैं, तथापि जन-सहयोग और जागरूकता के अभाव में इनका वास्तविक लाभ नहीं मिल पाया है। इस अभिशाप से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि युवा वर्ग दृढ़ निश्चय कर ले कि दहेज ले-देकर कतई विवाह नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त और कोई कारगर उपाय नहीं है।