भ्रष्टाचार : एक समस्या
एक समय था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था लेकिन आज यह स्थिति है कि भारत आर्थिक रूप से इतना पिछड़ रहा है कि सिवाय उस पर तरस खाने के और कुछ शेष नहीं रह गया है। स्वतंत्रता से पूर्व हमने देश से गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, अन्याय, धनी निर्धन के मध्य की चौड़ी खाई आदि को मिटाने की जो कल्पनाएँ की थी, भ्रष्टाचार रूपी दैत्य ने उनमें से हमारा कोई भी स्वप्न सत्य सिद्ध नहीं होने दिया है। हमारे देश में कभी भी न तो उत्तम साधनों का अभाव रहा है और न ही उच्चकोटि के नेता या समाज-सुधारकों का, फिर भी संसार के समृद्ध राष्ट्रों की तुलना में हमारा स्थान कहीं भी नहीं है। इसका मुख्य कारण सभी क्षेत्रों में बढ़ता भ्रष्टाचार है। खाद्य पदार्थों में मिलावट और अपने मुनाफे के लिए जी भरकर कर रहे गलत कार्यों को करने वालों की कोई कमी नहीं है। सरकारी विभागों में, विशेषकर पुलिस और कचहरियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के विषय में यदि लिखने बैठा जाए तो आँखें शर्म से नीची हो जाएँगी। इसका मुख्य कारण हमारे देश के कर्णधार नेताओं को कहना गलत न होगा। मंत्री पद की कुरसी पाने की भूख राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है। देखा जाए तो ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जहाँ भ्रष्टाचार के कदम न पहुँचे हों। आज आम आदमी पिसता चला जा रहा है। बढ़ती महँगाई ने उसकी कमर तोड़ दी है और उस पर हर एक काम के लिए रिश्वत की बढ़ती रकम ने उसकी उन्नति की हर राह को रोक दिया है। आवश्यकता है ऐसे सच्चे और अच्छे कर्णधारों की जो अपने कंधे पर देश की जिम्मेदारी को लेकर आगे बढ़ें और भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करें।