अनुच्छेद लेखन : श्रम का महत्त्व
श्रम का महत्त्व
‘श्रम’ ही सफलता का मूल मंत्र है। निरंतर परिश्रम ही किसी व्यक्ति, जाति या देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता-व्यक्ति की कर्म भावना ही उसे महान अथवा क्षुद्र बना देती है। संसार में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ मनुष्य ने अपनी श्रमशीलता के बल पर सफलता के शिखर को छुआ है। लिंकन, गांधी, बोस आदि अनेक जाने-अनजाने नाम निरंतर लगन से श्रम करके ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाए हैं। सच ही कहा गया है-‘उद्यमेन ही सिध्यन्ति, कार्याणि न मनोरथै:’-केवल इच्छा करने मात्र से कभी लक्ष्य की पूर्ति नहीं होती। सब प्रकार से समर्थ होने पर भी अगर आप अकर्मण्य रहे, तो विजय-पताका कभी न फहरा पाएँगे। अतः यदि हम स्वयं को और अपने देश को ऊपर उठाना चाहते हैं तो पुरानी बातों को भूलकर हम श्रम के महत्त्व को समझें। इससे भारत देश को विकसित देशों की श्रेणी में लाने में हमें देर नहीं लगेगी।
उद्यमी या परिश्रमी लोग जो चाहें कर सकते हैं। महान विजेता नेपोलियन अपनी सेना के साथ देश-देश जीतता हुआ बाढ़ के पानी की तरह बढ़ा आ रहा था। आल्पस पर्वत को देखकर सैनिक रुके, लेकिन जब नेपोलियन ‘कहाँ है आल्पस ? मुझे तो कहीं नजर नहीं आता’ कहते आगे बढ़ा तो सभी सैनिक उसके साथ हो लिए। परिश्रम का रास्ता फूलों का नहीं काँटों का रास्ता होता है। श्रम और दृढ़ निश्चय के बल पर ही व्यक्ति असफलताओं और पराजयों को पीछे ढकेल सफलता और विजय को खींचकर ला सकता है।