अनुच्छेद लेखन : सहकारिता
सहकारिता
सहकारिता एक आंदोलन है। इसका अर्थ है मिल-जुलकर काम करना। यह तो जगजाहिर है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। बहुत-सी छोटी-मोटी मुश्किलों व परेशानियों का हल हम अकेले या परिवार के स्तर पर हल कर लेते हैं लेकिन जब हमारा सामना बड़ी मुश्किलों व समस्याओं से होता है तो उसमें अधिक बल, अधिक धन और अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है। कहते हैं- बूँद-बूँद से सागर भर सकता है और राई – राई जोड़कर पर्वत। सहकारिता भी कुछ ऐसे ही विचार का नाम है। सच तो यह है कि बिना सहयोग के कोई व्यक्ति न तो विकास कर सकता है और न जिंदा ही रह सकता है। सहकारिता संगठन और सहयोग का वह प्रस्ताव है जिसका अच्छा परिणाम सुनिश्चित होता है। संगठित समूह को हर कार्य में सहायता मिलती है और कोई भी शत्रु चाहे वह व्यक्ति हो या परिस्थिति उसे अधिक नुकसान नहीं पहुँचा सकती। इसके विपरीत अकेले चलने वाले सदैव अपने लक्ष्य तक पहुँचने में नाकामयाब रहते हैं। एक आंदोलन और योजना के रूप में सहकारिता का जन्म सन् 1850 में जर्मनी में हुआ था। चारों ओर मच रहे हाहाकार में समितियों ने समस्या का इतना सुंदर समाधान किया कि लोगों को विश्वास हो गया कि सहकारिता ही उनका भाग्य बदल सकती है। भारत में 15 मार्च 1904 ई० को ‘सहकारी साख समिति कानून’ लागू किया गया। गाँवों में सहकारी समितियाँ स्थापित की गई। किसानों, दस्तकारों, कुटीर उद्योगों और दुकानदारों को इससे बहुत लाभ हुआ। भारत में सहकारिता आंदोलन का भविष्य उज्ज्वल है।