हमारा शौर्य पर्व : दशहरा
हमारा शौर्य पर्व : दशहरा
प्रस्तावना – उत्सव अथवा त्यौहार मानव के हर्षोल्लास और बंधुत्व की भावना के परिचायक हैं। इसमें संदेह नहीं कि त्यौहार द्वारा मानव अपने व्यस्त जीवन में कुछ समय के लिए विश्राम प्राप्त कर लेता है तथा अपनी चिंताओं से कुछ क्षण को विराम पाता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर हिंदुओं ने अनेक त्यौहार मनाने की परंपरा बनाई है। इन त्यौहारों में दशहरा का विशेष स्थान की दृष्टि से है।
दशहरा शब्द का अर्थ – ‘दशहरा’ शब्द दश + हरा से मिलकर बना है। क्षत्रिय श्री राम ने रावण के दस सिरों का हरण किया, इसलिए यह दशहरा कहलाया। रावण के दस सिर दस प्रकार के पापों के प्रतीक हैं। उन दसों पापों के प्रतीक सिरों का नाश करने के कारण भी इसका नाम सार्थक है।
दशहरा पर्व मनाने का समय – यह पर्व प्रतिवर्ष आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में दशमी के दिन देश के संपूर्ण प्रदेशों में मनाया जाता है। वैसे तो शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से ही भगवान राम की लीलाओं का प्रारंभ हो जाता है। देश का एक बड़ा समुदाय इस दिन देवी दुर्गा की पूजा करता है, जिसका प्रारंभ भी प्रतिपदा से ही हो जाता है। इस प्रकार यह पर्व प्रतिपदा से लेकर भरत मिलाप तथा राजगद्दी के रूप में द्वादशी तक चलता है। दशहरा पर्व का धार्मिक महत्त्व तथा मनाने के विभिन्न ढंग – इस पवित्र पर्व से अनेक धार्मिक कथाएँ संबद्ध हैं। पृथक्-पृथक् कथाओं एवं मान्यताओं के आधार पर पृथक्-पृथक् स्थानों व मान्यताओं वाले व्यक्ति इस पर्व को अनेक प्रकार से मनाते हैं।
रामलीला का प्रदर्शन किया जाता है। नौ दिन तक, आरंभ से अंत तक भगवान राम के चरित्र की लीलाएँ खेली जाती हैं, मेला लगता है । दर्शकगण मेले का आनंद लेते हैं। दसवें दिन इस रामलीला में आततायी रावण का वध दिखाया जाता है। रावण, कुंभकरण और मेघनाद के कागज़ के पुतले बनाकर उनमें कई प्रकार की आतिशबाज़ी रख दी जाती है। रंग-बिरंगी चिंगारियाँ उनमें से निकलने लगती हैं और ज़ोर-ज़ोर से धमाके होने लगते हैं।
बंगाल प्रांत में दशहरा के शुभावसर पर शक्तिस्वरूपा दुर्गा जी का पूजन किया जाता है ।
‘होगी जय, होगी, जय, हे पुरुषोत्त्म नवीन । कह महाशक्ति राम के बदन में हुई लीन॥’
बंगालियों का मत है कि श्री राम जब युद्ध में रावण को पराजित करने में असमर्थता का अनुभव करने लगे, तो उन्होंने विधिवत दुर्गा जी की पूजा की। उनके चरणों में समर्पित करने के लिए श्रीराम ने हनुमान को 101 नील कमल लाने के लिए भेजा । 100 कमल चढ़ाने के बाद दुर्गा जी ने श्री राम की परीक्षा ली जैसे ही आँख मूँदकर श्री राम ने 101 वां नील कमल लेने को हाथ बढ़ाया, वैसे ही दुर्गा जी द्वारा वह नील कमल लुप्त कर दिया गया। तब श्रीराम ने कहा, “यदि एक नील कमल नहीं तो क्या चिंता, मुझे भी तो जगत नील कमल के समान नेत्रों वाला कहता है, मैं एक नेत्र निकालकर दुर्गा जी के चरणों में अर्पित कर दूंगा।” और जैसे ही श्री राम अपना एक नेत्र निकालने को उद्यत हुए, दुर्गा जी ने साक्षात् दर्शन दिए और कहा, “तेरी आज ही रावण के साथ युद्ध में विजय होगी ” इसी उपलक्ष्य में वहाँ दुर्गा जी की पूजा की जाती है। कविवर निराला जी ने 108 कमलों द्वारा श्रीराम से शक्ति-पूजा है कराकर अंत में देवी द्वारा यह वरदान दिलवाया है।
शक्ति की पूजा करने वालों के अनुसार इस त्यौहार से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। तद्नुसार जब महिषासुर नामक दैत्य से देवतागण भी कंपायमान हो गए, तब उन्होंने एकत्रित होकर महाशक्ति की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया और वे प्रकट हुई। उन्होंने अपने अपूर्व पराक्रम से महिषासुर,शुंभ एवं निशुंभ आदि दैत्यों का वध करके भयभीत प्राणियों का भय निवारण किया। आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवरात्र प्रारंभ होती है। इसी तिथि से दुर्गा-पाठ का प्रारंभ हो जाता है। दुर्गा-भक्त इस नवरात्रि में नवमी तक दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। नवमी के दिन यज्ञ होता है, रात्रि को जागरण होता है और दुर्गा के गीत गाए जाते हैं।
दशहरा त्यौहार की उपयोगिता – यह कई कारणों से है। रामलीला के प्रदर्शन से बच्चों के हृदय में पिता की आज्ञा का पालन, गुरुभक्ति, मातृभक्ति की भावना, भ्रातृ-वत्सलता और शौर्य का संचार हो जाता है। दुष्ट रावण के वध को देखकर असंख्य लोगों के हृदय में दुराचार के प्रति ग्लानि हो जाती है। इस उत्सव को सभी मिलकर मनाते हैं।
उपसंहार – दशहरा पर्व भारतीय परंपरा, गौरव और संस्कृति का प्रत्यक्षीकरण कराता है। यह राष्ट्र के सामाजिक – सांस्कृतिक उत्थान में बहुत ही अधिक सहायक है। यह उत्सव हमें शिक्षा देता है कि अन्याय, अत्याचार और दुराचार को सहन करना भी एक महान पाप है। वीर भावनाओं से ओतप्रोत दशहरा हमें राष्ट्रीय एकता और दृढ़ता की प्रेरणा देता है, आततायियों को समाप्त करने का संकेत देता है।