हमारा मार्गदर्शक, गुरू या मालिक कौन है? क्या हमें पूरी जिंदगी एक मालिक की जरूरत होती है?
एक बार एक जंगल में घास खाते हुए एक गाय ने एक बाघ को दौड़ते हुए उसकी ओर आते देखा और भागने लगी। उसे डर था कि बाघ कभी भी उसे अपने पँजों में दबोच लेगा।
गाय बहुत तेजी से भागने की जगह ढूंढ रही थी और ऐसा करते हुए वह एक उथले तालाब में कूद गई। शिकार के इस माहौल में बाघ भी बिना सोचे समझे कूद गया।
दोनों को आश्चर्य हुआ कि तालाब में पानी बहुत कम था, लेकिन फिर भी उसकी गहराई में कीचड़ भरा हुआ था। एक – दूसरे पर गिरने पड़ने के बाद गाय और बाघ ने देखा कि वे एक दूसरे के पास ही गले तक कीचड़ में फंस गए हैं।
दोनों के सिर पानी के ऊपर थे, लेकिन बहुत छटपटाने के बाद भी वे तालाब से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। बाघ बार-बार गाय पर गुर्रा रहा था।
वह दहाड़ा – “मैं तुम्हारी हड्डियों को अपने दाँतों के बीच दबाकर चकनाचूर कर दूंगा।” वह गुस्से में छटपटाया, लेकिन जल्द ही बेचैन हो गया, क्योंकि उसे बचने की उम्मीद नजर नहीं आ रही थी।
बाघ को संघर्ष करते देख गाय कुछ सोचते हुए हंसी और उससे पूछा – “क्या तुम्हारा कोई मालिक है ?”
बाघ तिरस्कार करते हुए बोला – “मैं जंगल का राजा हूँ। मैं ही मालिक हूँ।”
गाय ने कहा – “होंगे, लेकिन तुम्हारी शक्ति तुम्हें बचा नहीं पा रही।”
बाघ ने गुस्से में जवाब दिया – ” और तुम्हारा क्या? तुम भी तो इस कीचड़ में मर जाओगी”
गाय थोड़ा मुस्कुराई और बोली – “नहीं, मैं नहीं मरूंगी।”
बाघ ने तुरंत जवाब दिया – “जब मैं खुद को नहीं बचा सकता तो साधारण गाय खुद को कैसे बचाएगी?”
गाय ने शान्ति से जवाब दिया – “मैं खुद को मुक्त नहीं कर सकती, लेकिन मेरे मालिक कर सकते हैं। जब सूरज डूबेगा और उन्हें मैं घर पर नहीं मिलूँगी, तो वे मुझे ढूंढने आएंगे। जब मैं उन्हें मिलूँगी, वे मुझे बचा लेंगे।”
बाघ चुप रह गया और उदास नजरों से गाय को देखने लगा।
जल्दी ही सूरज डूब गया और गाय का मालिक आ गया। उसने वही किया जो उसे करना चाहिए था। घर जाते हुए गाय और मालिक, दोनों एक-दूसरे के प्रति आभार महसूस कर रहे थे। साथ ही उन्हें बाघ पर यह सोचकर दया आ रही थी कि उन्हें बाघ को बचाने में खुशी होती, अगर उसने ऐसा करने दिया होता।
गाय समर्पित दिल का प्रतीक है और बाघ घमण्ड वाले मन का। वहीं मालिक गुरू का प्रतीक है। कीचड़ इस दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है और शिकार की दौड़ अस्तित्व के लिए संघर्ष का प्रतीक है।
स्वतन्त्र होना और किसी पर निर्भर न होना अच्छा है, लेकिन इसकी अति ठीक नहीं है। आपको हमेशा एक मालिक की जरूरत होगी, जो आप पर नजर बनाए रखे।
आपका कोई मार्गदर्शक या गुरू होने का यह अर्थ नहीं है कि आप कमजोर हैं। आप उनकी मदद से और भी मजबूत हो सकते हैं।