साना-साना हाथ जोड़ि
प्रश्न. ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ के आधार पर गंगटोक के मार्ग के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए जिसे देखकर लेखिका को अनुभव हुआ- “जीवन का आनंद है यही चलायमान सौंदर्य।”
उत्तर : प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका मौन भाव से शांत हो, किसी ऋषि की भाँति सारे परिदृश्य को अपने भीतर भर लेना चाहती थी। वह कभी आसमान छूते पर्वतों के शिखर देखती तो कभी ऊपर से दूध की धार की तरह झर-झर गिरते प्रपातों को, तो कभी नीचे चिकने-चिकने गुलाबी पत्थरों के बीच इठला-इठला कर बहती चाँदी की तरह कौंध मारती बनी-ठनी तिस्ता नदी को, नदी का सौंदर्य पराकाष्ठा पर था। इतनी खूबसूरत नदी लेखिका ने पहली बार देखी थी, वह इसी कारण रोमांचित हो चिड़िया के पंखों की तरह हल्की थी। पर्वतों के शिखर से गिरता फेन उगलता झरना ‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ मन को आह्लादित कर रहा था। लेखिका ने जैसे ही झरने की बहती जलधारा में पाँव डुबोया वह भीतर तक भीग गई और उसका मन काव्यमय हो उठा। जीवन की अनंतता का प्रतीक वह झरना जीवन की शक्ति का अहसास दिला रहा था। लेखिका ने कटाओ पहुँचकर बर्फ से ढके पहाड़ देखे जिन पर साबुन के झाग की तरह सभी ओर बर्फ गिरी हुई थी। पहाड़ चाँदी की तरह चमक रहे थे। ये सभी चैरवेति-चैरवेति अर्थात जीवन के चलायमान होने का सन्देश दे रहे थे।