संवाद लेखन : सत्यव्रत और ऋषि के बीच संवाद
सत्यव्रत और ऋषि के बीच संवाद
सत्यव्रत : (निकट पहुँचकर पाँव छूता है और चरणों में बैठ जाता है।) बहुत दूर से आया हूँ महाराज।
ऋषि : देवी सरस्वती ने भेजा है?
सत्यव्रत : हाँ महाराज। पर आप इस सूखे वृक्ष के नीचे बैठकर क्या कर रहे हैं?
ऋषि : एक-एक चुल्लू पानी दे रहा हूँ, इस पेड़ की जड़ में। (ऋषि घड़े से पानी लेकर पेड़ की जड़ में डालता जाता है)
सत्यव्रत : कितने दिन हो गए महाराज, आपको यह काम करते हुए?
ऋषि : पाँच वर्ष हो गए हैं, बेटे।
सत्यव्रत : पर वृक्ष तो अब तक हरा नहीं हुआ।
ऋषि : नहीं हुआ, और शायद होगा भी नहीं ।
सत्यव्रत : क्यों महाराज? ऐसा क्यों है?
ऋषि : साधना से प्रकृति अपना नियम नहीं बदलती है, बेटे!
सत्यव्रत : फिर इस साधना का लाभ ही क्या है, महाराज?
ऋषि : वही, जो तुम्हारी साधना का होगा। तुमने विद्वान बनने के लिए तपस्या की, लेकिन विद्वान नहीं बन सके। विद्वान बनने के लिए जिस तपस्या की आवश्यकता है, वह तुमने नहीं की है और सूखा पेड़ काटकर नया वृक्ष लगाने का जो परिश्रम है, वह मैंने नहीं किया। इसलिए न तो तुम्हें विद्या आई और न हरे वृक्ष की छाया मुझे मिली।