दो पटरी पर दुकान लगाने वालों के बीच संवाद
मटरुमल : हर माल पाँच रुपए में। हर माल पाँच रुपए में। आओ-आओ भाइयो, बहनों हर माल पाँच रुपए में। हर माल पाँच रुपए में। लुटा दिया, लुटा दिया। (मटरुमल के पास बैठा उसका साथी बोलता है।)
खचेडूमल : क्यों रे मटरु! आ गया सुबह ही सुबह धंधा करने।
मटरुमल : मजबूरी है यार, धंधा न करूँ तो खाऊँ कहाँ से?
खचेडूमल : क्यों बात बना रहा है यार! दोनों हाथों से लूट रहा है पब्लिक को। पाँच रुपए में तीन का माल भी ना देवे है, अंधी काट रहा है, अंधी।
मटरुमल : अबे दूर के ढोल सुहावने ही लगे हैं, आदमी को (फिर आवाज़ देता है। हर माल पाँच रुपए में। हर माल पाँच रुपए में लुटा दिया, लुटा दिया)
खचेडूमल : अरे! लुटा दिया मत कह। सच बोल, सच।
मटरुमल : और क्या सच बोलूँ। सच तो बोल ही रहा हूँ, यार खचेडू।
खचेडूमल : नहीं यार तू बोल, लूट लिया, लूट लिया पाँच रुपए में, आओ-आओ।