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संकट का सामना करने से ही सफलता मिलती है।

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। उनकी संगीत, खेलकूद सहित तमाम गतिविधियों में रुचि थी। अध्यात्म में खास रुचि होने की वजह से वे खेल-खेल में ही ध्यान करने लगते थे और घण्टों तक उसमें रम जाते थे।

उनकी माँ उन्हें हमेशा रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाती थी, जिन्हें वे खूब चाव से सुनते थे। ज्ञानार्जन व नई-नई चीजों के लिए वे देश भर में भ्रमण करते रहते थे।

एक बार बनारस में गंगा स्नान करके वे माँ दुर्गा के मंदिर गए। वहाँ दर्शन के बाद जब प्रसाद लेकर बाहर जाने लगे तो वहाँ पहले से मौजूद बहुत सारे बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे प्रसाद छीनने के लिए उनके नजदीक आने लगे।

बंदरों को अपनी तरफ आते देखकर स्वामी विवेकानंद भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए भागने लगे, पर बंदर उनका पीछा छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे।

वहाँ पर खड़े एक बुजुर्ग सन्यासी उन्हें देख रहे थे। उन्होंने स्वामी जी को रोका और कहा कि वे भागें नहीं, बल्कि उनका सामना करें और देखें कि क्या होता है। बुजुर्ग सन्यासी की सलाह पर वे रुक गए। उनके रुकते ही बंदर भी खड़े हो गए।

यह देखकर स्वामी जी की हिम्मत बढ़ गई और वे पलट कर बंदरों की ओर बढ़े। स्वामी जी को अपनी तरफ बढ़ता देखकर बंदर पीछे हटने लगे और थोड़ी ही देर में भाग खड़े हुए।

स्वामी जी ने कई वर्षों बाद एक सभा में इस घटना का जिक्र किया। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि इस घटना से उन्हें यह शिक्षा मिली कि समस्या का समाधान उससे भागने से नहीं, बल्कि डटकर उसका सामना करने से ही हो सकता है। इसलिए वे कभी भी किसी संकट से विचलित नहीं हुए और बिना डरे उसका सामना करने को तैयार रहे।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि संकट और समस्याओं का हल ही सफल बनाता है। जान लें कि अगर आपके रास्ते में कोई समस्या नहीं आ रही है तो यह रास्ता आपको सफलता की ओर नहीं ले जा सकता।

हम लोग किसी काम में व्यवधान या संकट को देखकर उसे शुरू करने से पहले ही उससे भागने लगते हैं, जबकि संकट का डटकर सामना करने से ही सफलता मिलती है।