शिरीष के फूल – हजारी प्रसाद द्विवेदी
शिरीष के माध्यम से मनुष्य को अनासक्त, अवधूत योगी बनने की प्रेरणा देना
शिरीष के फूल : सारांश
लेखक शिरीष को अवधूत कहता है जो भीषण गर्मी में भी अपने कोमल पुष्पों का सौंदर्य बिखेर रहा होता है। वह इसकी तुलना कबीर, कालीदास गांधीजी, सुमित्रानंदन पंत, कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर से करता है। वह पुराने को नए में बदलने के पक्ष में हैं और चाहता है कि पुराना अपना स्थान नए को खुशी-खुशी दे दे। शिरीष के माध्यम से लेखक मनुष्य को उसी की तरह अजेय जिजीवषा व धैर्य के साथ, लोक के साथ चिंतरत होकर कर्त्तव्यशील बने रहने की प्रेरणा देता है। वह वैभव-विलास के खोखलेपन के विरुद्ध है और समस्त प्राकृतिक और मानवीय वैभव में रह जाना चाहता है।