शब्दों में मिठास हो

दिन भर में हमें कई लोगों से बात करनी पड़ती है।

बोले बिना रहा नहीं जाएगा, ऐसे में वाणी विचारशक्ति का प्राकृतिक प्रवाह होना चाहिए न कि अनर्गल विचारों को बाहर फेंकना।

हमारे पास विचार की शक्ति है और शक्ति है तो कहीं न कहीं बहेगी ही।

जब यह शक्ति शब्दों के रूप में बहे तो कुछ इस से शब्द बोलें कि वे ही आपकी शक्ति बन जाएं।

कवि बहुत अच्छे वक्ता होते हैं। जिन शब्दों को हम सोचते हैं, उन्हें वे इतने प्रवाह में बोलते हैं कि सुनने के बाद बरबस निकलता है – वाह ! वाह ! और हम उनके शब्दों से प्रभावित हो जाते हैं।

देखा गया है कि सरेआम चिल्लाकर बोलने वाले भी माइक के सामने हकलाने लगते हैं। ऐसे में शब्दों का प्रवाह संतुलित एवं तर्क के साथ मिठास लिए हुए हो।

मनुष्य होने पर यह काम आना ही चाहिए।

जब भी बोलें, केवल इसलिए न बोलें कि बोलना है, बल्कि एक तप, एक होमवर्क के साथ बोलें।

सौजन्य – पंडित विजयशंकर मेहता जी