CBSEclass 7 Hindi (हिंदी)EducationHindi Grammar

वार्तालाप (मौखिक अभिव्यक्ति)


वार्तालाप


हम सभी बातचीत में अपना बहुत-सा समय व्यतीत करते हैं। एक-दो व्यक्तियों के साथ हुई बातचीत ही असली बातचीत होती है, क्योंकि इसी में अपने मन की बात दूसरों तक पहुँचाई जा सकती है। यह बातचीत का अनौपचारिक रूप होता है और इसके कोई नियम नहीं होते।

अनौपचारिक बातचीत में कोई बनावट नहीं होती। अपने मित्रों या परिवार में अपने भाई-बहनों के साथ हम ऐसे ही बात करते हैं। एक कहता है, दूसरा सुनता है, फिर दूसरा कहता है और पहला सुनता है। इस प्रकार बातचीत का सिलसिला निरंतर आगे बढ़ता रहता है। इसमें बनावट नहीं होती और दिल खोलकर बात की जाती है। इस बातचीत का अपना आनंद होता है और घंटों बीत जाएँ तो भी पता नहीं चलता। विशेष रूप से मित्रों की बातचीत में तो मस्ती का ही पुट रहता है।

परंतु बातचीत कला भी है। ऐसी कला जिसमें अभ्यास से महारथ हासिल की जा सकती है। अनौपचारिक बातचीत में भी मर्यादा का ध्यान तो रखना ही चाहिए। ऐसी कोई बात नहीं की जानी चाहिए जो आपके मित्र के दिल को चोट पहुँचाए। यदि उसकी भलाई के लिए उसकी आलोचना करने की आवश्यकता पड़े तो भी इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि बात संप्रेषित भी हो जाए और चोट भी न पहुँचे।

उदाहरणतः

उत्सव : हैलो! अविरल कैसे हो?

अविरल : ओ उत्सव ! आओ बैठो।

उत्सव : क्या पढ़ाई कर रहे थे?

अविरल : नहीं, कल वाद-विवाद प्रतियोगिता है न, उसी की तैयारी कर रहा था।

उत्सव : अविरल एक बात कहूँ, तुम्हें बुरा तो नहीं लगेगा।

अविरल : नहीं, नहीं, बोलो।

उत्सव : तुम मंच पर बोलते तो बहुत अच्छा हो, पर जब तुम खड़े होते हो तो एक पैर पर सारा बल देकर खड़े होते हो। यह देखने में अच्छा नहीं लगता। अगर तुम सीधे खड़े रहो तो प्रभाव अच्छा पड़ेगा।

अविरल : धन्यवाद उत्सव ! मैंने तो कभी इस बारे में सोचा ही नहीं था।

उत्सव : मेरा ऐसा कहना तुम्हें ख़राब तो नहीं लगा न।

अविरल : अरे नहीं, नहीं। बल्कि मुझे खुशी हुई कि तुमने अपना समझकर मेरी गलती मुझे बताई।

इसी बात को अगर उत्सव अविरल को चिढ़ाते हुए कहता कि पता है अविरल, जब तुम मंच पर टेढ़े होकर खड़े होते हो, तो बिल्कुल लंगड़े लगते हो। ठीक से खड़े हुआ करो। ऐसी स्थिति में भी बात तो संप्रेषित हो जाती पर अविरल को सुनने में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता और कई बार ऐसे कथनों से मित्रता में दरार भी पड़ जाती है।

पड़ोसियों के साथ की गई बातचीत भी अनौपचारिक ही होती है। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हमारे पास इतना समय ही नहीं होता कि पड़ोसियों के साथ समय व्यतीत कर सकें, किंतु यह हम सब जानते हैं कि ज़रूरत पड़ने पर पड़ोसी ही सबसे पहले हमारे काम आते हैं। अतः अपने पड़ोसियों से मित्रता अवश्य रखनी चाहिए, परंतु इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि इस मित्रता की अपनी एक मर्यादा होती है। इसी के आधार पर पड़ोसियों से वार्तालाप करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. यदि पड़ोसी हमउम्र है तो नाम लिया जा सकता है, यदि कुछ बड़े हैं, तो उनके उपनाम के साथ जी लगाकर; जैसे- गुप्ता जी, जैन साहब आदि कहा जा सकता है और यदि उम्र अधिक है तो किसी उचित संबोधन का प्रयोग करना चाहिए; जैसे- चाचा जी, मौसी जी आदि।

2. पड़ोसी मित्रों को यथोचित सम्मान दें।

3. उचित अभिवादन करें।

4. उनकी निजी जिंदगी में उतना ही झाँकें जितना वे चाहें।

5. अपना सुख-दुख उनसे बाँटे और उनसे भी पूछें।

6. बातचीत में आत्मीयता झलकनी चाहिए।

7. उनकी परेशानी के समय अपनी सेवाएँ उन्हें प्रस्तुत करें।

8. बातचीत में दोनों लोगों का समान महत्त्व होता है, अतः स्वयं इतना न बोलें कि सामने बैठा व्यक्ति उकता जाए। उसे बोलने का अवसर ही न मिले और वह आपसे कन्नी काटने लगे। न ही इतना कम बोलें कि सामने बैठा व्यक्ति यह समझ ही न पाए कि आप उसकी बातों में रुचि ले रहे हैं या नहीं।

संबंधियों के साथ बातचीत करते समय संबंधों की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। बड़ों के साथ बात करते समय उन्हें सम्मान देना चाहिए। उनके साथ यार, तू और सुना जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

स्नेह, संबंध होने पर भी ‘गुरु के सम्मान’ को बनाए रखना होगा।

दफ़्तर के अधिकारियों के साथ बातचीत करते समय औपचारिकता ही बनाए रखनी चाहिए। वार्तालाप को केवल काम तक ही सीमित रखना चाहिए। यदि ऊँचे पद के अधिकारियों से निजी जीवन से संबंधित प्रश्न करना ही हो तो भी औपचारिकता के साथ, जैसे-“सर! आपकी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही। क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ?”

साक्षात्कार के समय की गई बातचीत पूरी तरह से औपचारिक होती है। इसमें सामने बैठे व्यक्तियों को उचित अभिवादन दिया जाता है। आवश्यकतानुसार सभी निर्देशों का पालन किया जाता है। पूछे गए प्रश्नों का ही उत्तर देना होता है, जितना पूछा जाए उसी के अनुकूल उत्तर देना होता है। भावुकता का यहाँ स्थान नहीं होता। यह वार्तालाप पूरी तरह से औपचारिक होता है। अतः धन्यवाद, मैं आपका सदा आभारी रहूँगा जैसे – औपचारिक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

इसी के साथ साक्षात्कार देते या लेते समय निर्भीकता एवं आत्मविश्वास का होना भी अत्यंत आवश्यक है। यदि आप उचित बात भी कह रहे हों, परंतु घबराकर तो उसका प्रभाव नहीं पड़ता और सामने वाला व्यक्ति आपके प्रति अपनी राय सकारात्मक नहीं बना पाता ।

हम बस में, रेलों में यात्रा करते समय भी वार्तालाप करके अपने मित्र बनाया करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों से मित्रता थोड़े ही समय की होती है। अतः इसमें बहुत भावुक होकर अपने निजी जीवन को पूरा खोलकर प्रस्तुत नहीं किया जाता। बातचीत किसी से भी की जाए, व्यक्तित्व की विशिष्टता उसमें झलकती ही है, झलकनी भी चाहिए, किंतु कुछ सामान्य निर्देशों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए जिससे वार्तालाप प्रभावशाली हो; जैसे :

1. उचित संबोधन एवं अभिवादन का प्रयोग ।

2. उम्र एवं पद के अनुरूप मर्यादा एवं सम्मान को रखना चाहिए।

3. बातचीत अवसरानुकूल होनी चाहिए-प्रसन्नता एवं दुख जैसे संवेदनों से भरपूर।

4. अनौपचारिक बातचीत में बनावटीपन नहीं होना चाहिए, मन की बात कह देनी चाहिए, किंतु जहाँ कुछ औपचारिकता हो वहाँ अवसर के अनुकूल सोच-समझकर अपनी बात कहनी चाहिए।

5. संबंधों की सुगंध बातचीत में झलकनी चाहिए। छोटों को स्नेह और बड़ों के प्रति सम्मान व्यक्त होना चाहिए।

6. बातचीत किसी भी विषय पर की जा सकती है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे विषय लें जिनमें अन्य लोगों को भी रस आए। बातचीत उनके लिए बोझ न बने और वे वहाँ से उठकर चले जाने की न सोचने लगे।

7. बातचीत भाषण नहीं है, इसलिए सबको बोलने का अवसर मिलना चाहिए।