वाराह अवतार
अनन्त भगवान ने प्रलय के जल में डूबी हुई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए वराह का शरीर धारण किया।
कहा जाता है कि एक दिन स्वायम्भुव मनु ने बड़ी नम्रता से हाथ जोड़कर अपने पिता ब्रह्मा जी से कहा– “पिताजी ! एकमात्र आप ही समस्त जीवों के जन्मदाता हैं। आप ही जीविका प्रदान करने वाले भी हैं। हम आपको नमस्कार करते हैं। हम ऐसा कौन सा कर्म करें, जिससे आपकी सेवा कर सकें ? हमें सेवा करने की आज्ञा दीजिए।”
मनु की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा –”पुत्र तुम्हारा कल्याण हो। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। क्योंकि तुमने मुझसे आज्ञा माँगी है और आत्मसमर्पण किया है।पुत्रों को अपने पिता की इसी रूप में पूजा करनी चाहिए। उन्हें अपने पिता की आज्ञा का आदरपूर्वक पालन करना चाहिए। तुम धर्मपूर्वक पृथ्वी का पालन करो। यज्ञों द्वारा श्री हरि की आराधना करो। प्रजापालन से ही मेरी सेवा होगी।”
इस पर मनु ने कहा –”पूज्यपाद! मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूंगा। किंतु सब जीवों का निवास स्थान पृथ्वी; इस समय प्रलय के जल में डूबी हुई है। मैं पृथ्वी का पालन कैसे करूँ?”
पृथ्वी का हाल सुनकर ब्रह्मा जी बहुत चिंतित हुए। वह पृथ्वी के उद्धार की बात सोच ही रहे थे कि उनकी नाक से अचानक अंगूठे के आकार का एक वराह शिशु निकला। देखते ही देखते वह पर्वताकार होकर गरजने लगा। ब्रह्मा जी को भगवान की माया समझते देर न लगी। भगवान की घुरघुराहट सुनकर वे उनकी स्तुति करने लगे।
ब्रह्मा जी की स्तुति से वराह भगवान प्रसन्न हुए। वे जगत कल्याण के लिए जल में घुस गए। थोड़ी देर बाद वे जल में डूबी हुई पृथ्वी को अपनी दाढ़ों पर लेकर रसातल से ऊपर आए। उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिए महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से आक्रमण किया।
इससे उनका क्रोध चक्र के समान क्षीण हो गया। उन्होंने उसे लीला से ही इस प्रकार मार डाला, जैसे सिंह हाथी को मार डालता है।
जल से बाहर निकले हुए भगवान को देखकर ब्रह्मा आदि देवता हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे। इससे प्रसन्न होकर वराह भगवान ने अपने खुरों से जल को रोक कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया।
पृथ्वी का उद्धार करने वाले वराह भगवान को हम सब प्रणाम 🙏🙏 करते हैं।