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वामन अवतार

एक समय की बात है। युद्ध में इंद्र से हारकर दैत्यराज बलि गुरु शुक्राचार्य की शरण में गए। शुक्राचार्य ने उनके अंदर देवभाव जगाया।

कुछ समय बाद गुरु कृपा से बलि ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। प्रभु की महिमा कितनी विचित्र है कि कल का देवराज इंद्र आज भिखारी हो गया। वह दर-दर भटकने लगा।

अंत में इंद्र अपनी माता अदिति की शरण में गया। इंद्र की दशा देखकर माँ का हृदय फटने लगा। अपने पुत्र के दुःख से दुःखी अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया।

व्रत के अंतिम दिन भगवान ने प्रकट होकर अदिति से कहा –”देवी ! चिंता मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। इंद्र का भाई बनकर उनका कल्याण करूंगा।” यह कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए।

आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गई। अदिति के गर्भ से भगवान ने वामन के रूप में अवतार लिया। भगवान को पुत्र के रूप में पाकर अदिति की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा।

भगवान को वामन ब्रह्मचारी के रूप में देखकर देवताओं और महाऋषियों को बहुत आनन्द हुआ। उन लोगों ने कश्यप जी को आगे करके भगवान का उपनयन आदि संस्कार करवाया।

उसी समय भगवान ने सुना कि राजा बलि भृगुकच्छ नामक स्थान पर अश्वमेघ यज्ञ कर रहे हैं। उन्होंने वहाँ के लिए यात्रा की। भगवान वामन कमर में मूँज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए थे। बगल में मृगचर्म था। सिर पर जटा थी।

इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेश में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान ने बलि के यज्ञ–मंडप में प्रवेश किया। उन्हें देखकर बलि का हृदय गदगद हो गया। उन्होंने भगवान को एक उत्तम आसन दिया। बलि ने नाना प्रकार से वामन भगवान की पूजा की।

उसके बाद बलि ने प्रभु से कुछ मांगने का अनुरोध किया। वामन भगवान ने तीन पग भूमि माँगी। शुक्राचार्य प्रभु की लीला समझ रहे थे। उन्होंने बलि से कहा कि वे दान देने से मना कर दें। परन्तु बलि ने मना कर दिया।

बलि ने संकल्प लेने के लिए जल का पात्र उठाया। शुक्राचार्य अपने शिष्य का हित सोच कर पात्र में प्रवेश कर गए। जल गिरने का रास्ता रूक गया। भगवान ने एक कुश उठाकर पात्र के छेद में डाल दिया। उनकी एक आंख फूट गई।

संकल्प पूरा होते ही भगवान वामन ने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग में बलि ने अपनेआप को ही सौंप दिया। बलि के इस समर्पण भाव से भगवान प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे सुतल लोक का राज्य दे दिया। इंद्र को स्वर्ग का स्वामी बना दिया।

कहा जाता है कि भगवान वामन द्वारपाल के रूप में राजा बलि को और उपेंद्र के रूप में इंद्र को नित्य दर्शन देते हैं।

परम् दयालु वामन भगवान को हम सब प्रणाम 🙏 करते हैं।